दशहरा के बारे में जरूरी बातें और शुभ मुहुर्त
दशहरा की पूजा ऐसे करें और यहां जाने महत्व
दशहरा 5 अक्टूबर को मनाया जाएगा
दशहरा यानी विजयादशमी का त्योहार हिंदू धर्म में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। दशहरा हर साल अश्विन महीने में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। विजयादशमी का ये त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि जिस दिन दशहरा का त्योहार मनाया जाता है उस दिन भगवान राम ने रावण का अंत किया था। इसके बाद माता सीता को उसकी कैद से बाहर निकाला था। तब से हर साल दशहरे पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है। जगह-जगह बड़े-बड़े मेले लगते हैं। इस दिन जश्न का माहौल लगता है। इस साल दशहरा 5 अक्टूबर को मनाया जाएगा। आइए जानते हैं दशहरा के बारे में कुछ जरूरी बातें और शुभ मुहुर्त कब है।
दशहरा शुभ मुहूर्त
दशहरा का शुभ मुहूर्त यहां जाने। दशमी तिथि की शुरुआत 04 अक्टूबर को दोपहर 2 बजकर 20 मिनट से हो रही है। इसके बाद ये तिथि 05 अक्टूबर को दोपहर 12 बजे समाप्त हो जाएगी। ऐसे में हिंदू पंचांग के मुताबिक, इस दिन विजयादशमी की पूजा का शुभ मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 07 मिनट से 02 बजकर 54 मिनट तक है।
दशहरा की पूजा ऐसे करें और यहां जाने महत्व
नौ दिन के नवरात्री के बाद दसवें दिन दशहरा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सुबह जल्दी स्नान करके साफ कपड़े पहनने चाहिए। इसके बाद सुबह ही भगवान श्री राम, माता सीता और हनुमान जी की पूजा खूब भक्ति भाव से करें। इसके अलावा तमाम जगहों पर इस दिन गाय के गोबर से 10 गोले बनाए जाते हैं। इन गोबर के गोलों के ऊपर जौ के बीज लगाए जाते हैं। इसके बाद भगवान को धूप और दीप दिखाकर पूजा की जाती है। गोबर के गोलों को जला दें।ऐसा कहा जाता है कि रावण के 10 सिर की तरह ये गोले अहंकार, लोभ, लालच का प्रतीक होते हैं। इसलिए अपने अंदर से इन बुराइयों को खत्म करने की भावना के साथ ये गोबर के गोले जलाए जाते हैं।
अपराजिता पूजा अपराह्न काल के दौरान की जाती है। आश्विन शुक्ल दशमी को अपराहन काल के दौरान दशहरा मनाया जाता है। यह काल उस समय की अवधि है जो सूर्योदय के बाद दसवें मुहूर्त से शुरू होकर बारहवें मुहूर्त से पहले समाप्त होती है। अपराजिता पूजा करने के लिए अपने घर से उत्तर पूर्व दिशा में पूजा करने के लिए एक पवित्र और शुभ स्थान खोजें। या फिर आप एक मंदिर, बगीचे के आसपास भी पूजा कर सकते हैं। यह बहुत अच्छा होगा यदि पूरा परिवार पूजा में शामिल हो सके। हालाँकि, इस पूजा को अकेले भी कर सकते हैं।
उस जगह को साफ कर लें और चंदन के लेप से अष्टदल चक्र (8 कमल की पंखुड़ियां) बना लें। अब संकल्प लें कि आप अपराजिता देवी की यह पूजा अपने परिवार और अपने कल्याण के लिए कर रहे हैं। उसके बाद, इस मंत्र के साथ चक्र के केंद्र में देवी अपराजिता का आह्वान करें।