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पहले आना था, न कि 30 साल बाद…केंद्र ने दी थी याचिका

  • भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजे के रूप में 7400 करोड़ रुपए नहीं मिलेंगे

  • मुआवजे पर केंद्र की याचिका खारिज

  • मामले में पहले आना चाहिए था न कि तीन दशक के बाद

मध्यप्रदेश डेस्क: भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजे के रूप में 7400 करोड़ रुपए नहीं मिलेंगे। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजय किशन कौल के नेतृत्व वाली संविधान पीठ ने आज यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (UCC) की उत्तराधिकारी फर्मों को बड़ी राहत देते हुए केंद्र सरकार की क्यूरेटिव याचिका को खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र को इस मामले में पहले आना चाहिए था न कि तीन दशक के बाद।

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दरअसल बीते 12 जनवरी को पांच जजों के संविधान पीठ ने सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।  वहीं यूनियन कार्बाइड के साथ अपने समझौते को फिर से खोलने के लिए केंद्र ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी।  भोपाल गैस पीड़ितों को 7400 करोड़ रुपये का अतिरिक्त मुआवजा दिलवाने के लिए केंद्र सरकार ने क्यूरेटिव याचिका दाखिल की थी।

आज जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले में अपना फैसला अब सुना दिया है।  दरअसल जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके महेश्वर की पीठ ने भी बीते 12 जनवरी को केंद्र की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

                        Bhopal Gas Tragedy Supreme Court will give verdict on compensation of Bhopal gas tragedy victims today Bhopal Gas Tragedy: भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों के मुआवजे पर आज सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला, केंद्र ने दी थी याचिका

वहीं बीते 12 जनवरी को हुई सुनवाई में UCC की उत्तराधिकारी फर्मों ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि भारत सरकार ने निपटान के वक्त कभी भी यह सुझाव नहीं दिया था कि मुआवजा अपर्याप्त था।   वहीं केंद्र सरकार साल 1989 में समझौते के तहत अमेरिकी कंपनी से मिले 470 मिलियन अमरीकी डॉलर (715 करोड़ रुपए) के अलावा UCC की उत्तराधिकारी फर्मों से मुआवजे के रूप में 7 हजार 844 करोड़ रुपए चाहता है।

                       

गौरतलब है कि 1984 में 2 और 3 दिसंबर की रात को हुए गैस रिसाव से 3,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और 1.02 लाख लोग इससे प्रभावित हुए थे। केंद्र सरकार लगातार इस बात पर जोर देती रही है कि 1989 में तय किए गए मुआवजे के समय इंसानों की मौतों, उन पर रोगों के कारण पड़ने वाले बोझ और पर्यावरण को हुए वास्तविक नुकसान की गंभीरता का ठीक से आकलन नहीं किया जा सका था। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 10 जनवरी को यूसीसी से ज्यादा मुआवजे की मांग वाली केंद्र सरकार की याचिका पर केंद्र से सवाल किया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार 30 साल से अधिक समय के बाद कंपनी के साथ हुए समझौते को फिर से तय करने का काम नहीं कर सकती है।

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