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Kargil Vijay Diwas 2022: भारतीय सेना के इन 10 हीरो ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को दी थी करारी शिकस्त

  • 26 जुलाई को मनाया जाता है कारगिल विजय दिवस

  • भारत ने पाकिस्तान को दिखाया था हार का मुंह

नेशनल डेस्क: भारत में हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। इसी दिन 1999 में भारत ने पाकिस्तान को कारगिल युद्ध में हार का मुंह दिखाया था। यह युद्ध भारत और पाकिस्तान (India Pakistan War) के बीच दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों पर दो माह से भी ज्यादा समय तक चला था। इस युद्ध की शुरुआत पाकिस्तान की ओर से 3 मई 1999 को ही कर दी गई थी जब 5,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था।

भारतीय सेना के हुए करीब 562 जवान शहीद

3 मई को शुरू हुई यह जंग 26 जुलाई को कारगिल विजय के रूप में खत्म हुई थी। तभी से इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। हालांकि दो महीने से भी ज्यादा समय तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना के करीब 562 जवान शहीद हुए थे और 1363 अन्य घायल हुए थे। आज हम आपको सेना के ऐसे 10 वीरों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें कारगिल युद्ध का हीरो भी कहा जाता है।

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कारगिल युद्ध के हीरो

कैप्टन विक्रम बत्रा

बीते साल कैप्टन विक्रम बत्रा के जीवन पर एक फिल्म शमशेरा भी आई थी, जिसमें सिद्धार्थ मल्होत्रा ने विक्रम बत्रा का किरदार निभाया था। हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में जन्मे कैप्टन विक्रम बत्रा को कारगिल युद्ध का हीरो कहा जाता है। वह 13वीं जम्मू एंड कश्मीर राइफल्स में शामिल थे। उन्होंने विक्रम तोलोलिंग पर पाकिस्तानी बंकर पर कब्जा किया और अपने सैनिकों को बचाने के लिए 7 जुलाई 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों से सीधे भिड़ गए। आज उस चोटी को बत्रा टॉप के नाम से जाना जाता है। सरकार ने देश के हित में जान गंवाने वाले कैप्टन विक्रम बत्रा को परमवीर चक्र देकर सम्मानित किया था।

कैप्टन मनोज कुमार पांडे

गोरखा राइफल्स के फर्स्ट बटालियन का हिस्सा रहे कैप्टन मनोज कुमार पांडे को ऑपरेशन विजय का महानायक भी कहा जाता है। कैप्टन मनोज कुमार पांडे के नेतृत्व में ही सेना की टुकड़ी ने जॉबर टॉप और खालुबर टॉप पर वापस कब्जा किया था। घायल होने के बावजूद उन्होंने तिरंगा को टॉप पर लहराया। सरकार ने पांडेय को परमवीर चक्र से सम्मानित किया था।

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राइफल मैन संजय कुमार

कारगिल युद्ध में राइफल मैन संजय कुमार ने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया था। वह स्काउट टीम के लीडर थे और अपनी छोटी टुकड़ी के साथ उन्होंने फ्लैट टॉप पर कब्जा जमाया। संजय कुमार गोली लगने के बाद भी दुश्मनों से लड़ते रहे थे।

मेजर पदमपानी आचार्य

कारगिल युद्ध में अपनी साहस का परिचय देते हुए दुश्मनों से लोहा लिया और 28 जून 1999 को लोन हिल्स पर वीरगति को प्राप्त हो गए। मरणोपरांत सरकार ने उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया। शहीद आचार्य राजपूताना राइफल्स की बटालियन में थे।

कर्नल सोनम वांगचुक

कारगिल का ये हीरो लद्दाख स्काउट रेजिमेंट में अधिकारी थे। युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ते हुए कॉरवट ला टॉप पर वीरगति को प्राप्त हो गए। मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

कैप्टन एन केंगुर्सू

शहीद कैप्टन एन केंगुर्सू ने कारगिल युद्ध के मैदान में से दुश्मनों को खदेड़ दिया था। ऑपरेशन विजय के दौरान लोन हिल्स पर 28 जून 1999 को शहीद हो गए। इस योद्धा को सरकार ने मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया था।

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कैप्टन अनुज नैय्यर

शहीद कैप्टन अनुज नैय्यर जाट रेजिमेंट की 17वीं बटालियन का हिस्सा था। कारगिल युद्ध के इस हीरो ने दुश्मनों से आखिरी सांस तक लड़ाई की और इस तरह वीरगति को प्राप्त हो गए। उनकी वीरता और साहस के लिए सरकार ने उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया।

ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में पैदा हुए ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव कमांडो घटक प्लाटून को गाइड करते थे। जिसने एक चक्र के साथ टाइगर हिल पर एक स्ट्रैटजी बनाकर बंकर पर हमला किया था। कारगिल युद्ध के दौरान 4 जुलाई को ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव शहीद हो गए। सरकार ने उनकी वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया।

नायक दिगेंद्र कुमार

नायक दिगेंद्र कुमार ने भी कारगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी। दिगेन्द्र ने सीने पर तीन गोलियां खाने के बाद हिम्मत नहीं हारी और अकेले ही 11 पाकिस्तानी बंकरों को नष्ट कर दिया। दिगेन्द्र ने पाकिस्तानी मेजर अनवर खान को मौत के घाट उतार सेना की जीत सुनिश्चित की और 13 जून 1999 को सुबह चार बजे तिरंगा गाड़ दिया। अदम्य साहस का परिचय देने के लिए सरकार ने उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया।

मेजर राजेश सिंह अधिकारी

मेजर राजेश सिंह अधिकारी ने कारगिल युद्ध के दौरान अपने प्राणों की आहुति दी थी। घायल होने के बाद भी उन्होंने सबयूनिट को निर्देशित करना जारी रखा और दूसरे दुश्मन की स्थिति पर कब्जा कर करके उन्हें पछाड़ दिया। उन्हें मरणोपरांत युद्ध के मैदान में बहादुरी के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

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