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चंबल नदी में बढ़ रहा घड़ियालों का कुनबा, 2700 नन्हे घड़ियालों के साथ लौटी नदी की रौनक

  • चंबल नदी में बढ़ रहा घड़ियालों का कुनबा
  • अंडे से निकल चंबल नदी में पहुंचे 2700 नन्हे घड़ियाल
  • 1979 से राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी में हो रहा घड़ियालों का संरक्षण
 आगरा- बाह क्षेत्र में फैले चंबल में प्रकृति की अद्भुत छटा देखने को मिलती है। यहां बहती साफ-सुथरी चंबल नदी में अब लुप्तप्राय: जलीय जीवों का ठिकाना है। इसका स्वच्छ पानी घड़ियाल, मगरमच्छ, डॉल्फिन, कछुओं के लिए संजीवनी का काम कर रहा है। चंबल नदी में घड़ियाल, मगरमच्छ, कछुए और डॉल्फिन का कुनबा साल दर साल बढ़ रहा है। दुनिया में लुप्त होने के कगार पर पहुंच गए घड़ियालों को चंबल नदी ने संजीवनी दी है। चंबल नदी में इस बार करीब 2700 नन्हे घड़ियाल चंबल के कुनबे में शामिल हो गए हैं।

आगरा के डीएफओ दिवाकर श्रीवास्तव ने बताया कि पिछले साल बाह, इटावा रेंज में घड़ियाल के 144 नेस्ट थे, जबकि इस वर्ष 147 नेस्टों में घड़ियालों ने अंडे दिए हैं। अंडों से निकले नन्हे घड़ियालों को चंबल नदी में छोड़ा गया है। मार्च के आखिर से अप्रैल तक चंबल की बालू में घड़ियालों ने अंडे दिए थे। एक नेस्ट में 25 से 60 अंडे थे। इनसे औसतन 32 बच्चे निकलते हैं। नेस्टिंग के समय पर वन विभाग ने जीपीएस से लोकेशन ट्रेस कर जाली लगाई थी ताकि जानवर अंडों को नष्ट ना कर सकें। चंबल सेंचुरी में घड़ियालों की संख्या बढ़कर 1910 हो गई है। इसी तरह मगरमच्छों की संख्या भी बढ़कर 598 हो गई और डॉल्फिन 157 हुई हैं।

राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी में घड़ियालों का संरक्षण वर्ष 1979 से हो रहा है। साल 2008 में चंबल नदी में एक साथ सौ से ज्यादा घड़ियालों की मौत के मामले के बाद वन्य जीव विभाग ने घड़ियालों और मगरमच्छ के लिए संरक्षण का अभियान चलाए और खनन पर रोक के प्रभावी उपाय किए, जिसके बाद घड़ियालों की संख्या लगातार बढ़ी है।

अखबारवाला.कॉम के लिए आगरा से बृज भूषण की रिपोर्ट

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