दो साल बाद कल से कावड़ यात्रा शुरू
26 जुलाई तक चलेगी कांवड़ यात्रा
कोरोना के कारण दो साल बाद हो रही शुरू
नेशनल डेस्क: कोरोना के कारण दो साल बाद कल से कावड़ यात्रा शुरू होने जा रही है। यह कांवड़ यात्रा 26 जुलाई तक चलेगी। आपको बता दें कि कोरोना संक्रमण के चलते साल 2020 और 2021 में सावन माह की कांवड़ यात्रा नहीं हुई थी। इस यात्रा को लेकर शिव भक्तों में काफी उत्साह है। यूपी की योगी सरकार ने इस यात्रा को लेकर तैयारी शुरू कर दी है।
इस रास्ते से जा सकेंगी बड़ी कांवड़
- दिल्ली देहरादून हाईवे NH-58 पर हरिद्वार से कांवड़ यात्रा शुरू होकर, मुजफ्फरनगर, मेरठ के रास्ते दिल्ली, हरियाणा राजस्थान की सीमा में प्रवेश करते हैं।
- मेरठ से बुलंदशहर के रास्ते, अलीगढ़, आगरा, मथुरा, राजस्थान और मध्य प्रदेश तक जाते हैं।
- दिल्ली की सीमा से गाजियाबाद और मेरठ के मोदीपुरम तक 78 किलोमीटर की सीमा में रैपिड रेल प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य चल रहा है। यहां सड़क का अधिकांश भाग बाधित है।
- आपको बता दें कि 18 जुलाई से NH 58 पर भारी वाहनों का डायवर्जन प्रस्तावित है। कांवड़ियों की संख्या को देखते हुए इस तारीख में परिवर्तन भी किया जा सकता है।
- डायवर्जन लागू होने के बाद NH-58 पर किसी भी प्रकार के भारी वाहनों का प्रवेश नहीं किया जाएगा। उन्हें वैकल्पिक रास्तों से भेजा जाएगा। कांवड़ियों की संख्या बढ़ने पर हाईवे को बंद कर दिया जाएगा।
कांवड़ यात्रा के नियम
- कांवड़ यात्रा शुरू के बाद कांवड़ियों के लिए किसी भी प्रकार का नशा करना वर्जित होता है।
- यात्रा के दौरान उस व्यक्ति को मांस,मदिरा और तामसिक भोजन से परहेज करना होता है।
- कांवड़ यात्रा के दौरान पैदल चलने का विधान है. हालांकि अब लोग बाइक, ट्रक या फिर किसी दूसरे साधनों का इस्तेमाल करने लगे हैं।
- कांवड़ यात्रा में शुद्धता बहुत जरूरी है। इसलिए बिना स्नान किए कावड़ को हाथ नहीं लगाना चाहिए।
- यात्रा के दौरान किसी कारणवश रुकना पड़े तो गंगाजल भरे कांवड़ को नीचे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। इसे किसी ऊंचे स्थान पर या स्टैंड पर रखें।
कावड़ यात्रा की मान्यता
मान्यता है कि भोले नाथ सावन में कांवड़ से गंगाजल चढ़ाने से ज्यादा प्रसन्न होते हैं। इसके पीछे मान्यता यह भी है कि जब समुद्रमंथन के बाद 14 रत्नों में विष भी निकला था और भोलेनाथ ने उस विष का पान करके दुनिया की रक्षा की थी। विषपान करने से उनका कंठ नीला पड़ गया और कहते हैं इसी विष के प्रकोप को कम करने के लिए, उसे ठंडा करने के लिए शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है और इस जलाभिषेक से शिव प्रसन्न होकर आपकी मनोकामनाएं पूर्ण करते है।