उत्तराखंड के हल्द्वानी में स्थानीय लोगों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा
इस मुद्दे ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है
रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर कब्जा कर बसा ली ‘गफूर बस्ती’
रेलवे ध्वस्तीकरण की कार्यवाही शुरू कर देगा
(उत्तराखंड डेस्क) उत्तराखंड के हल्द्वानी में कई दिनों से स्थानीय लोगों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। विरोध प्रदर्शन करने वाले लोगों में ज्यादातर मुस्लिम महिलाएं हैं। उन्होंने अपने हाथों में बैनर-पोस्टर और तख्तियां ले रखा है, जिस पर सरकार से सवाल किया गया है कि उनके साथ आखिर भेदभाव क्यों किया जा रहा है? विरोध प्रदर्शन का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
अब इस मुद्दे ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है. AIMIM के बाद अब समाजवादी पार्टी ने भी अल्पसंख्यक कार्ड खेलते हुए इस फैसले को वापस लेने की मांग की है. सपा के उत्तराखंड प्रदेश महासचिव शोएब अहमद सिद्दीकी ने कहा कि अतिक्रमण के नाम पर देश में केवल एक समुदाय विशेष को निशाना बनाया जा रहा है. उन्होंने बताया कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश पर सपा क़े 10 लोगों का एक प्रतिनिधिमंडल बुधवार को हल्द्वानी में पहुंचेगा.
दरअसल बीते सप्ताह मंगलवार 27 दिसंबर को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अपने फैसले में बेहद साफ कहा है कि अतिक्रमणकारियों को एक हफ्ते का नोटिस देकर रेलवे की जमीन खाली कराई जाए इसके बाद लोगों ने हाईकोर्ट से अपील की कि पहले उनकी रहने की व्यवस्था की जाए उसके बाद उन्हें वहां से हटाया जाए लेकिन हाई कोर्ट ने इस अपील को स्वीकार करते हुए साफ कर दिया कि पहले अतिक्रमण हटाया जाए उसके बाद पुनर्वास पर विचार किया जाए हाईकोर्ट के आदेश के बाद प्रशासन ने अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही शुरू कर दी है
इसके बाद यहां रहने वाला मुस्लिम समुदाय सड़कों पर उतर आया और विरोध शुरू कर दिया प्रशासन ने यहां रहने वाले लोगों को 10 जनवरी 2023 तक का समय दे दिया है.
बता दें कि नैनीताल हाई कोर्ट ने हल्द्वानी में रेलवे की 29 एकड़ जमीन पर कब्जा करके वहां ‘गफूर बस्ती’ बसा लेने वाले लोगों को हटाने का आदेश दिया है. इस आदेश के बाद रेलवे ने समाचार पत्रों के जरिए नोटिस जारी कर अतिक्रमणकारियों को 1 हफ्ते के अंदर अतिक्रमण हटा लेने को कहा है.
चेतावनी दी है कि ऐसा न करने पर रेलवे ध्वस्तीकरण की कार्यवाही शुरू कर देगा. हाई कोर्ट के आदेश के बाद से लोगों में हड़कंप मचा है. हाई कोर्ट के आदेश के बाद अब अतिक्रमणकारियों ने दिल्ली के शाहीन बाग आंदोलन के स्टाइल में महिलाओं और बच्चों को आगे कर दिया है. जो अपनी पढ़ाई और सुरक्षित भविष्य का हवाला देकर अवैध कब्जे न हटाने की मांग कर रहे हैं. वहीं महिलाएं ठंड के मौसम का सहारा लेकर इस अतिक्रमणरोधी को गलत बता रही हैं.