संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश की प्रसन्नता के लिए रखा जाता है। व्रत रख कर उनकी कथा का भी पाठ किया जाता है। मान्यता है कि भगवान गणेश की यह प्राचीन कथा पढ़ने-सुनने से घर में शुभता और खुशहाली का वास होता है। भगवान गणेश माता लक्ष्मी के साथ सदा के लिए उसी घर में वास करते हैं – जहां देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु के विवाह की इस कथा का पाठ होता है।
भगवान विष्णु-लक्ष्मी के विवाह की बात है। विवाह की तैयारियां हो रही थी। सभी देवी-देवताओं निमंत्रण दिया जा रहा था। गणेश जी को विवाह के लिए आमंत्रित नहीं किया गया। विष्णु की बारात के समय सभी देवताओं ने पूछा कि गणपति कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। सबने जानना चाहा कि वो कहां हैं। देवताओं ने श्री विष्णु से गणेश जी के उपस्थित न होने की वजह पूछी।
भगवान विष्णु ने बताया कि शिव को न्यौता दिया गया है। गणेश उनके साथ आ सकते हैं। यह भी कहा कि गणेश खाते हैं। इस बात पर एक देवता ने यह सुझाव दिया कि गणपति को विष्णुलोक की रक्षा में यही छोड़ कर जाएंगे। सबको यह सुझाव पसंद आया।
गणेश देवताओं के कहने पर वहां रुक गए। तभी देवऋषि नारद वहां आएं और उनसे न चलने का कारण पूछा। गणेश ने कारण बताया। यह भी बताया कि वो भगवान विष्णु से क्रोधित हैं। देवऋषि ने गणेश जी को सुझाव दिया कि अपने चूहों की सेना को भेजकर रास्ता खुदवा दो। तब देवताओं को आपकी अहमियत समझ आएगी। चूहों की सेना ने ऐसा ही किया। विष्णु का रथ वहीं जमीन में धस गया। कोशिश करने पर भी कोई भी देवता उस रथ को गड्ढे से ना निकाल पाए।
देवताओं की विनती पर भगवान गणेश ने उनके विघ्न हरें और बारात को आगे बढ़ाने के लिए गड्ढे से रथ को बाहर निकाला।
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