राधा रानी की प्रिय सखी को समर्पित हैै ये व्रत
समस्त गोपियों में से ललिता थी सबसे खास
देवी ललिता की पूजा से जीवन के संकट होते हैं दूर
संतान की रक्षा के लिए होता है शिव-गौरी का पूजन
धर्म डेस्क: आज 25 अगस्त, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन ललिता सप्तमी का पर्व मनाया जाएगा। बहुत कम लोग जानते हैं कि प्रत्येक वर्ष मनाए जाने वाला ये पावन पर्व श्री कृष्ण व राधा रानी की सबसे प्रिय गोपी ललिता देवी को समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ललिता का पूरा नाम ललिता देवी था। इसलिए इस दिन को गोपिका ललिता जंयती भी कहा जाता है। जी हां, धार्मिक ग्रंथों की मानें तो इस दिन जो जातक देवी ललिता की पूजा आदि करता है उस पर राधा-कृष्ण दोनों का आशीर्वाद प्राप्त होता, जिससे जीवन में आनंद और प्रसन्नता का आगमन होता है। तो चलिए जानते हैं कौन थी ललिता देवी तथा, क्या है इनकी पूजा का महत्व, साथ ही साथ जानेंगे पूजन का शुभ मुहूर्त। इसके अलावा विस्तार से भी जानेंगे देवी ललिता के अलावा इस किसकी पूजा करनी चाहिए।
पूजा का शुभ मुहूर्त
सप्तमी तिथि- 25 अगस्त दोपहर 12 बजकर 23 मिनट तक।
इसके बाद अष्टमी की तिथि आरंभ हो जाएगी। बता दें अष्टमी तिथि को राधाष्टमी का पर्व मनाया जाता है।
कौन थीं ललिता देवी
कहा जाता है ललिता देवी राधा रानी की सबसे खास व प्रिय सहेलियों में से एक थीं। जो अपने से ज्यादा राधा रानी का ध्यान रखती थीं। इन्हें ललिता सखी के नाम से भी जाना जाता है। कथाओं के अनुसार ललिता देवी का संबंध मथुरा के ऊंचागांव से था। आज भी संपूर्ण ब्रजमंडल में ललिता देवी के प्रेम और आस्था की कथाएं सुनाईं जाती हैं। ललिता देवी हर कला में निपुण थीं और वे राधा जी के साथ खेला करती थीं। वे राधा रानी को नौका विहार भी कराया करती थीं। प्रेम के बारे में इनकी समझ बहुत गहरी थीं। मथुरा में ललिता सप्तमी का पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। यहा के लोक मत के अनुसार ललिता सप्तमी का पर्व प्रेम के महत्व को दर्शाने वाला पर्व है।
संतान सप्तमी पूजा विधि-
धार्मिक ग्रंथों आदि के अनुसार इस दिन संतान के लिए भगवान शिव तथा देवी पार्वती का भी पूजन किया जाता है।
इस दिन सबसे पहले प्रातः स्नान आदि कर शुद्ध वस्त्र धारण कर घर के पूजा स्थल में बैठकर भगवान शिव और माता गौरी को साक्षी मानकर व्रत एवं पूजा का संकल्प लिया जाता है।
इसके बाद दोपहर के समय भगवान शंकर शिव एवं महागौरी की विधि वत पूजा करें।
पूजा स्थल पर चौक बनाकर शिव और गौरी के चित्र या प्रतिमा स्थापित करें, फिर यहां एक कलश स्थापित करें।
अब फिर धूप, दीप, नेवैद्य, फल, पुष्प आदि भगवान शिव और माता गौरी को अर्पित करें तथा 7 मीठी पूड़ी, कलावा भगवान शिव और माता पार्वती को चढ़ाएं।
अब एक रक्षा सूत्र अपनी संतान को बांधें, तथा संतान सप्तमी की कथा सुनें या पढ़ें।
आखिर में भगवान शिव और माता गौरी की आरती करें, अंत में 7 मीठी पूड़ी में से स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें एवं पारण कर व्रत को संपन्न करें।
बता दें पूजा के समय अर्पित की गई तमाम वस्तुएं ब्राह्मण को दान करें।