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भूल से भी पितृ पक्ष में न करें इनमें से एक भी काम नहीं तो…

  • पितृ पक्ष में नहीं करना चाहिए ये काम
  • ऐसे काम करने वालों को नहीं मिलता पितरों का आशीर्वाद

धर्म डेस्क: सनातन धर्म में पितृ पक्ष के दौरान पितरों को प्रसन्न करने के लिए लोग कई कार्य करते हैं। मगर इस दौरान कई बार लोग कुछ ऐसे भी काम कर जाते हैं जिन्हें करने से उन्हें पितृ पक्ष में अपने पितरों के आशीर्वाद का नहीं बल्कि नाराज़गी का शिकार होना पड़ता है। जी हां, ज्योतिष शास्त्र की मानें तो इस दौरान यानि पितृ पक्ष में कुछ ऐसे कामों के बारे में बताया गया है जिन्हें करना बहुत भारी व नुकसानदायक साबित होता है। मगर वो काम हैं क्या?

आइए विस्तार पूर्वक जानते हैं इन कामों के बारे में-
पितृ पक्ष के 15 दिन बहुत ही विशेष माने जाते हैं, इस बार का पितृ पक्ष 01 सितंबर को भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि के साथ ही शुरू हो चुका है। हिंदू पंचांग के अनुसार आज सुबह 10:51 मिनट पर पूर्णिमा तिथि के समापन के साथ ही श्राद्ध पक्ष की प्रतिपदा तिथि का आरंभ होगा। जिसके बाद लोगों द्वारा श्राद्ध आदि का काम संपन्न किया जाएगा। शास्त्रो में इसके बारे में जो वर्णन मिलता है कि उसके अनुसार श्राद्ध पक्ष के पूरे दिन किसी भी व्यक्ति को नीचे बताए गए काम नहीं करने चाहिए।

बताया जाता है कि ये समय अपने पूर्वजों तथा पितरों को याद करने का होता है, इसलिए इस समय कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। इतना ही नहीं बल्कि लोक मान्यता है इस दौरान यानि पितृ पक्ष में न तो नए कपड़े खरीदे पहने जाते हैं। इसके अलावा पुरुषों को इस दौरान न दाड़ी बनवानी चाहिए और न ही बाल कटवाने चाहिए।

इस दौरान पितृपक्ष में भूलकर भी किसी पशु-पक्षी को न सताए तथा ध्यान रखें कि पितृ पक्ष के दौरान कोई भूखा या गरीब व्यक्ति आपके द्वार से खाली न जाए।

जो व्यक्ति जिस दिन किसी का भी श्राद्ध कर्म करें, वो ध्यान रखें कि किसी भी हालत में शरीर पर तेल का प्रयोग न करें। न ही अपने शरीर पर या वस्त्रों पर इत्र (सैंट) लगाएं।

इस दौरान हर किसी को अपने ही घर पर रहकर सातविक भोजन बनाकर तर्पण करना चाहिए। इसके अलावा जिस दिन श्राद्दा आदि करें उस दिन पान न खाएं।

पितरों के श्राद्ध दौरान कभी लोहे के बर्तनों का प्रयोग न करें। इसके स्थान पर अन्य धातु के बने बर्तनों का उपयोग कर सकते हैं। श्राद्ध करने के लिए पत्तल का प्रयोग कर सकते हैं। कहते हैं कि इससे अशुभ प्रभाव पड़ता है।

पितृपक्ष के आखिरी दिन यानि अमावस्या के दिन भूले बिसरे सभी का श्राद्ध कर सकते हैं।

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