- किसानों की मदद के लिए वॉलमार्ट आया आगे
- डेढ़ लाख किसान उठा सकेंगे लाभ
- महिला किसानों को बढ़ावा देने पर है ज़ोर
नेशनल डेस्क : कंपनी नें किसानों को पैदावार और कमाई बढ़ाने में मदद करने के लिए बड़ा कदम उठाया है। फाउंडेशन अपने दो अनुदानों के जरिये कुल डेढ़ करोड़ डॉलर का निवेश करेगा।
भारत में यह नौ गैर सरकारी संगठनों टेनेजर (Tanager) और प्रदान (PRADAN) के ज़रिए कम से कम डेढ़ लाख किसानों की मदद करेगा।इनमें लगभग 80 हजार महिला किसान इस योजना की लाभार्थी होंगी।कंपनी का कहना है कि वो फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन यानी FPO के जरिये महिला किसानों के लिए रोजगार के मौके बढ़ाने की भी कोशिश करेंगे।
बता दें कि 2018 में कंपनी ने किसानों की जीविका में सुधार के लिए 180 करोड़ रुपये के निवेश का ऐलान किया था। अब इसी के तहत 45 लाख डॉलर की मदद दी जाएगी। इसके तहत किसानों को बेहतर उत्पादन और उचित बाजार पहुँच से अधिक कमाने में मदद मिलेगी।
वॉलमार्ट ने ज़ारी किया बयान…
वॉलमार्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष कैथलीन मैकलॉघलिन ने कहा कि “कोविड-19 ने भारत के किसानों पर दबाव बढ़ा दिया है। महिला किसानों को घर में अलग से जिम्मेदारियों का सामना करना पड़ रहा है, जबकि उनकी आय कम होती जा रही है। भारत में महिला किसानों पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा है। उनके लिए काम के अवसरों की कमी होती जा रही है। ऐसे में इन्हें समर्थन देने की जरूरत है।
किसानों की आय पर हो रहा बुरा असर
वॉलमार्ट का कहना है कि सप्लाई चेन का बना रहना बहुत जरूरी है। इससे किसानों की आय बुरी तरह प्रभावित होती है। इसलिए फाउंडेशन के लिए किसानों को समर्थन देना जरूरी हो गया है। वॉलमार्ट पर्यावरण के अनुकूल खेती को बढ़ावा देना अपनी जिम्मेदारी मानती है।
इसके अलावा फ्लिपकार्ट ग्रुप के सीईओ कल्याण कृष्णमूर्ति ने कहा, ‘भारत में किसानों को उत्पादकता और पैदावार में सुधार करने, बाज़ार की बहुमूल्य जानकारी पहुंच हासिल करने और अधिक कुशल और पारदर्शी सप्लाई चेन के हिस्से के रूप में सफल बनाने के लिए नई टेक्नोलॉजी समाधानों की विशाल क्षमता है। किसानों को सशक्त बनाने और उन्हें डिजिटल युग में लाने के लिए फाउंडेशन के रणनीति में एफपीओ की एक अहम भूमिका है।’
कोरोनाकाल में किसान बेहाल
भारत में कोरोना महामारी फैलने के बाद हुए लॉकडाउन से हाशिए पर पड़े लोगों को सबसे ज़्यादा नुक़सान हुआ। कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन का खामियाजा उन किसानों को भी भुगतना पड़ा, जिनकी पूरी खेती ही मजदूरों के भरोसे है।