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SC का रवैया, अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश लगाने जैसा: रिटायर्ड जस्टिस मदन बी. लोकुर

  • अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने का प्रयास
  • सरकार ले रही राजद्रोह कानून का सहारा
  • मौलिक अधिकारों को महत्व न देने को बताया गलत तरीका

नेशनल डेस्क:  सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी. लोकुर ने ‘बोलने की आज़ादी और न्यायपालिका’ के विषय पर एक वेबिनार को संबोधित किया, जिस दौरान उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के रवैये को निराशाजनक बताते हुआ चिंता जताई।

उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी को दबाने के लिए सरकार राजद्रोह कानून का सहारा ले रही है। जस्टिस लोकुर का कहना है कि बोलने की आज़ादी को कुचलने के लिए सरकार फर्जी खबरें फैलाने के आरोप लगाने का तरीका भी अख्तियार कर रही है। सेवानिवृत्त जज ने उदाहरण के तौर पर मौजूदा समय में फैल रहे कोरोना वायरस और इससे संबंधित वेंटिलेटर की कमी जैसे मुद्दों की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर फर्जी खबर के प्रावधानों के तहत आरोप लगाए जाने के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि हाल के समय में इस तरह की घटनाओं में इजाफा देखने को मिल रहा है। साल में अब तक राजद्रोह के लगभग 70 मामले सामने आए हैं। 

जस्टिस लोकुर ने मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे के बयान पर भी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ‘यह कहना कि मौजूदा परिस्थिति की वजह से अभी के समय में मौलिक अधिकार इतने महत्वपूर्ण नहीं हैं, ये गलत तरीका है।’ दरअसल, मुख्य न्यायाधीश बोबडे ने  27 अप्रैल को द हिंदू को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि ‘यह ऐसी स्थिति नहीं है, जहां अन्य किसी समय की तरह अधिकारों को बहुत प्राथमिकता या महत्व दिया जाए।

 

उन्होंने कहा, ‘आप ये नहीं कह सकते कि अभी के समय में हमें जीवन के अधिकार को भूल जाना चाहिए. यदि आप आपातकाल के समय जीवन के अधिकार को नहीं भूल सकते हैं तो मुझे समझ नहीं आता कि अभी के समय में आप इसे कैसे भूल सकते हैं.’

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