- शादी में निभाई जाने वाली इस रस्म का है बहुत महत्व
- कन्या दान को कहा जात है बड़ा महादान
- जानिए क्यों किया जाता है कन्या दान
धर्म डेस्क: शादी, जिसके बारे में कहा जाता है कि एक न एक दिन हर किसी को अपने जीवन में एक समय पर करना होती है। यूं तो लड़ाका-लड़की दोनों की अपने होने वाले पार्टनर को लेकर कई तरह के सपने सजाते हैं। मगर लड़कियों का बात करें तो ये अपने आने वाले कल को लेकर कुछ ज्यादा उत्सुक रहती हैं। इसका कारण यह है कि शादी के बाद एक लड़की अपना सब कुछ छोड़कर दूसरे घर में जाती है, और उसका ये कर्तव्य बताया जाता है कि दूसरे घर में जाकर उसे वो सारे काम भी करने होते हैं जो उन्होंने कभी अपने घर में नहीं किए होते। और अपने लोगों से भी अधिक अपने ससुुराल के लोगों के प्रेम करना होता है। कहा जाता है ये सारी बातें हर लड़की के मां-बाप उसे शादी में होने वाली परंपरा कन्या दान से पहले या कन्या दान के बाद बताते हैं।
कहा जाता है शादी में होने वाली तमाम रस्मों व परंपराओं से सबसे महत्वपूर्ण यही होती है, जिस समय न केवल लड़की स्वयं बल्कि उसके माता-पिता से लेकर तमाम रिश्तेदार भावुक हो जाते हैं। मगर क्या आप ने कभी ये सोचा है कि आखिर हिंदू धर्म की शादी-ब्याह में होने वाली इस परंपरा का क्या महत्व है? क्यों कहा जाता है कि इस परंपरा के बिना शादी एक तरह से अधूरी मानी जाती है? और क्यों इसे सभी दान में से सबसे बड़ा दान कहा जाता है?
अगर आप इन सभी प्रश्नों के उत्तर पाना चाहते हैं तो चलिए हम आपको बताते हैं इसके पीछे का कारण कि सनातन धर्म में इसका क्या महत्व है-
सबसे पहले आपको बता दें कन्या दान की रस्म हमेशा लड़की के माता-पिता द्वारा संपन्न की जाती है। लड़की के माता-पिता अपनी बेटी का वर यानि लड़के के हाथ में सौंपते हैं। इस रस्म के दौरान लड़की के पिता अपनी बेटी के हाथों पर हल्दी लगाते है। जिसके बाद पिता के हाथ के के ऊपर लड़की का हाथ रख जाता है, फिर वर अपने लड़के के पिता यानि अपने ससुर के हाथ के नीचे अपना हाथ रखता है। अब कन्या के हाथ पर पिता कुछ गुप्त दान और फूल रखता है। आखिर में मंत्रोच्चारण के साथ पिता अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथ में दे देता है, और कन्या दान की ये रस्म पूरी होती है।
अब बात करते हैं कि क्यों किया जाता है कन्या दान-
शास्त्रों में कन्या दान का अर्थ बताया गया है कि माता-पिता इस दान की विधि को संपन्न करते हुए अपने घर की लक्ष्मी और संपत्ति वर को सौंपते हैं। इस परंपरा के माध्यम से वो वर को ये कहते हैं कि आज से उनकी पुत्री की सारी जिम्मेदारियां उसके पति को निर्वहन करनी होंगी। साथ ही जब कन्या दान करने के बाद प्रत्येक माता-पिता इसके बाद यही उम्मीद करते हैं कि ससुराल पक्ष में भी उसे वही सम्मान और प्रेम मिलेगा जो अब तक उनके घर मिला है। ऐसा कहा जाता है यहीं करणों की वजह से इस रस्म को विवाह से जोडा़ जाता है।
सनातन धर्म की धार्मिक मान्यता के अनुसार जब भी कोई माता-पिता कन्या दान करते हैं। वास्तु के अनुसार तो इससे संतान तथा और माता पिता के के साथ-साथ लड़की के ससुराल पक्ष दोनों के लिए भी सौभाग्य लाता ह। मान्यताएं ये भी प्रचलित हैं कि जिन लोगों को कन्या का दान करने का सौभाग्य प्राप्त होता है उनके लिए इससे बढ़कर और कुछ नहीं होता है। इतना ही नहीं जो व्यक्ति अपने जीवन में 1 बार ये कार्य करता है यानि कन्या दान करता है इस जातक के लिए स्वर्ग के रास्ते खुल जाते हैं।