फौज को धमकी के 4 घंटे बाद गिरफ्तारी
इस्लामाबाद हाईकोर्ट से रेंजर्स ने किया अरेस्ट
आर्मी हेडक्वॉर्टर पर हमला-अफसरों के घर जलाए
International Desk. सैन्य तख्तापलट और राजनीतिक अस्थिरता के लिए कुख्यात पाकिस्तान सुलग रहा है। दुनिया के इस एकमात्र परमाणु शक्ति संपन्न इस्लामिक राष्ट्र में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद स्थिति बेकाबू हो चुकी है। खान के समर्थक और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ (पीटीआई) के हजारों कार्यकर्ता मुल्क के तमाम बड़े शहरों में सड़कों पर उतरे हुए हैं। राजधानी इस्लामाबाद, लाहौर, पेशावर और रावलपिंडी जैसे देश के बड़े शहरों से आगजनी और हिंसक प्रदर्शन की खबरें आ रही हैं।
आजादी के बाद का पाकिस्तान का राजनीतिक इतिहास पूर्व प्रधानमंत्रियों के खून से रंगा हुआ है। भारत की तरह यहां भी प्रधानमंत्री मुल्क का सबसे ताकतवर सियासी शख्स होता है। लेकिन ये बिल्कुल हाथी की सफेद दांत की तरह होते हैं। असल सत्ता रावलपिंडी स्थित सैन्य मुख्यालय में बैठने पर जनरल के पास होती है। इनके लिए पाकिस्तान में एक शब्द का इस्तेमाल होता है ‘इस्टैबलिशमेंट’।
पाकिस्तान में लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए जिन हुक्मरानों ने ‘इस्टैबलिशमेंट’ को चुनौती देने की हल्की कोशिश भी की, उन्हें दुध में से मक्खी की तरह सत्ता से निकाल कर फेंक दिया गया। क्रिकेट की पिच से सियासत की पिच पर एंट्री करने वाले इमरान खान का भी ऐसा ही अंजाम दिखता नजर आ रहा है। कभी फौज के लाडले खान अब उसी सेना की आंखों में चुभ रहे हैं। वो और उनके लोगों ने जिस तरह से सेना और आईएसआई जैसी पाकिस्तान की दो सबसे ताकतवर संस्थाओं को चुनौती देने की कोशिश की है, उसने उनके खात्मे की पटकथा एक तरह से लिख दी है।
फौज के लाडले से बने दुश्मन नंबर वन
पाकिस्तान में कोई भी सियासी दल या राजनेता आर्मी या आईएसआई जैसी ताकतवर संस्थाओं के खिलाफ बोलने से पहले 100 बार सोचता है। 2018 में क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान जब पहली बार मुल्क के वजीर – ए – आजम (प्रधानमंत्री) बने तो सबको काफी हैरानी हुई। तब आम चुनाव में मात खाए सियासी दलों ने इमरान खान पर फौज की मदद से जीतने का आरोप लगाया। पीपीपी नेता और पाकिस्तान के मौजूद विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी तब अपनी तकरीरों में कहा करते थे, इमरान खान ‘इलेक्टेड नहीं बल्कि सेलेक्टेड’ हैं।
भुट्टो का इशारा साफ तौर पर इस्टैबलिशमेंट था। इधर, इमरान खान और इस्टैबलिशमेंट के बीच हनीमून पीरियड जैसे ही खत्म हुआ विपक्षी दलों ने मौके को लपक लिया। पीपीपी, पीएमएलएन जैसी पार्टियां जो सेना पर हमलावर थीं, उन्हीं की मदद से प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक मुवमेंट (पीडीएम) बनाकर आज सत्ता का सुख भोंग रही हैं। वही, कभी फौज के डार्लिंग रहे इमरान आज की तारीख में सेना के दुश्मर वन बन गए हैं।
इमरान गिरफ्तार और निशाने पर आई आर्मी
बीते साल यानी 2022 के अप्रैल में इमरान खान भी पाकिस्तान के उन राजनेताओं की जमात में शामिल हो गए, जिन्हें बतौर प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही हटना पड़ा। इमरान का एक तरह से तख्तापलट हुआ था। जिसे सेना ने विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर अंजाम दिया। यही वजह है कि इस घटना के बाद से खान विपक्ष से सत्ता में आए सियासी दलों के साथ-साथ इस्टैबलिशमेंट पर भी खूब बरसे। उनकी तकरीरों में फौज और आईएसआई के जनरलों के खिलाफ आरोपों की बौछार रहती थी। फौज द्वारा चेताने के बावजूद प्रचंड लोकप्रियता की जहाज पर सवार इमरान नहीं रूके और तभी से उनकी उल्टी गिनती शुरू हो गई।
कल यानी मंगलवार 9 मई को पाक रेंजर्स ने इमरान खान को इस्लामबाद हाईकोर्ट से ही उठा लिया। उनके खिलाफ अल कादिर यूनिवर्सिटी स्कैम केस में ये कार्रवाई हुई। इसके बाद ही पूरे देश में हिंसक प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया। दिलचस्प बात ये है कि प्रदर्शनकारियों के निशाने पर सरकार नहीं बल्कि सेना है। रावलपिंडी स्थित मिलिट्री हेडक्वार्टर तक पर हमला किया गया। लाहौर में तो एक सैन्य अधिकारी के घर को आग के हवाले कर दिया गया। पूरे देश में धारा 144 लागू कर दी गई है।
हालांकि, पाकिस्तान के सियासी जानकार मानते हैं कि मुल्क के सुलगने और आर्मी को निशाना बनाए जाने से इमरान खान की मुश्किलें और बढ़ने वाली हैं। पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान मुल्क में कभी भी किसी लोकतांत्रिक ढंग से लोकप्रिय राजनेता को पचा नहीं पाया है, जिसकी स्वीकार्यता आम जनता में इनती हो जाए कि फौज उसके सामने बौना लगने लगे। ऐसे में इमरान खान के खिलाफ आने वाले दिनों में सेना का और कठोर रूख देखने को मिल सकता है।