- प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष को आती है मासिक दुर्गाष्टमी
- देवी दुर्गा की पूजा से होती है सभी मनोकामनाएं पूर्ण
धर्म डेस्क: प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि के दौरान दुर्गाष्टमी का पर्व पड़ता, जिस दौरान देवी दुर्गा के भक्त उपवास करते हैं।
साथ ही साथ ही दिन देवी दुर्गा माता की विधि वत पूजा करते हैं। बता दें ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मुख्य दुर्गाष्टमी अश्विन माह में नौ दिन के शारदीय नवरात्रि उत्सव के दौरान पड़ती है, जिसे महाष्टमी कहा जाता है। शास्त्रों में दुर्गाष्टमी को दुर्गा अष्टमी के रूप में भी लिखा जाता है तथा मासिक दुर्गाष्टमी को मास दुर्गाष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते हैं इसकी पूजन विधि, पौराणिक कथा तथा मंत्र आदि।
दुर्गाष्टमी की पूजा विधि –
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दुर्गाष्टमी के अवसर पर विधि विधान से व्रत और पूजन करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
इस दिन प्रातः स्नान करने के बाद सबसे पहले पूजा स्थल पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि करें।
इसके बाद लकड़ी के पाट पर लाल वस्त्र बिछाएं और उस पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें।
अब देवी दुर्गा को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें तथा प्रसाद के रूप में फल और मिठाई भेंट करें।
फिर धूप और दीपक जलाकर पहले श्री दुर्गा चालीसा का पाठ करें तथा बाद में मां की आरती का गुणगान करें।
दुर्गा अष्टमी कथा
शास्त्रों में वर्णित इससे संबंधिक कथा के मुताबिक सदियों पहले पृथ्वी पर जब असुर बहुत शक्तिशाली होकर वे स्वर्ग पर अपना राज चलाने लगे, देवताओं को मारने लगे तब देवताओं ने त्रिदेव से कृपा की पुकार की। कथाओं के अनुसार इस असुरों में से सबसे ताकतवार असुर महिषासुर था। जिसका वध करने के लिए भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने शक्ति स्वरूप देवी दुर्गा को बनाया था, तथा देवी दुर्गा को विशेष हथियार प्रदान किए थे। जिसके बाद आदिशक्ति दुर्गा ने पृथ्वी पर आकर महिषासुर के साथ-साथ समस्त असुरों का खात्मा किया था। ऐसा कहा जाता इसके बाद से दुर्गा अष्टमी का पर्व प्रारम्भ हुआ था।
देवी दुर्गा के खास पूजन मंत्र-
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥
ॐ क्लींग ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती ही सा,
बलादाकृष्य मोहय महामाया प्रयच्छति
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते॥