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नारद जयंती 2022 :  विष्णु भगवान के परम भक्त नारद मुनि, नारद जयंती पर जानते है इसका धार्मिक महत्व

नारद जयंती 2022 :  हिंदू कैलेंडर के अनुसार, नारद जयंती हर साल कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि पर मनाई जाती है। इस साल नारद जयंती 17 मई 2022, दिन मंगलवार को है। नारद मुनि
विष्णु भगवान के परम भक्तों में से एक माने जाते हैं। देवर्षि नारद मुनि सभी लोकों में यात्रा करते थे, जिनमें पृथ्वी, आकाश और पाताल का समावेश होता था। ताकि देवी-देवताओं तक संदेश और सूचना का संचार किया जा सके। नारद मुनि अपने साथ में हमेशा वीणा धारण किया करते थे। उन्होंने गायन के माध्यम से संदेश देने के लिए अपनी वीणा का उपयोग किया। देवर्षि नारद व्यासजी, वाल्मीकि तथा परम ज्ञानी शुकदेव जी के गुरु माने जाते हैं। कहा जाता है कि नारद मुनि सच्चे सहायक के रूप में हमेशा सच्चे और निर्दोष लोगों की पुकार श्री हरि तक पहुंचाते थे। इन्होंने देवताओं के साथ-साथ असुरों का भी सही मार्गदर्शन किया। यही वजह है कि सभी लोकों में उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। आइए जानते हैं आज नारद मुनि की जन्म कथा…

नारद मुनि जन्म कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि पूर्व कल्प में नारद ‘उपबर्हण’ नाम के एक गन्धर्व थे। एक बार भगवान ब्रह्मा ने उपबर्हण को उनके अशिष्ट आचरण के कारण शूद्र योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। श्राप के फलस्वरूप वह ‘शूद्रादासी’ के पुत्र हुए। बचपन से ही साधु-संतों के साथ रहने के कारण इस बालक के चित्त में रजोगुण और तमोगुण को नाश करने वाली भक्ति का प्रादुर्भाव हो गया। लगातार श्री नारायण की भक्ति करते हुए उन्हें एक दिन भगवान की एक झलक दिखाई दी। ये बालक नारायण के उस स्वरुप को अपने ह्रदय में बसा के बार-बार दर्शन करने की इच्छा करने लगा, परन्तु दोबारा नहीं देख सका।

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लेकिन अचानक उन्हें किसी अदृश्य शक्ति की आवाज सुनाई दी- ”हे दासीपुत्र ! अब इस जन्म में फिर तुम्हें मेरा दर्शन नहीं होगा, लेकिन अगले जन्म में तुम मेरे पार्षद हो जाओगे”। एक सहस्त्र चतुर्युगी बीत जाने पर ब्रह्मा जागे और उन्होंने सृष्टि करने की इच्छा की, तब उनकी इन्द्रियों से मरीचि आदि ऋषियों के साथ मानस पुत्र के रूप में नारदजी अवतीर्ण हुए और ब्रह्माजी के मानस पुत्र कहलाए।

तभी से श्री नारायण के वरदान से नारद मुनि वैकुण्ठ सहित तीनों लोकों में बिना किसी रोक-टोक के विचरण करने लगे। नारद मुनि को अजर-अमर माना गया है। माना जाता है कि वीणा पर तान छेड़कर प्रभु की लीलाओं का गान करते हुए ये ब्रह्ममुहूर्त में सभी जीवों की गति देखते हैं।

वहीं रामायण के एक प्रसंग के अनुसार कहा जाता है कि नारद मुनि के श्राप के कारण ही त्रेता युग में भगवान राम को माता सीता से वियोग सहना पड़ा था। नारद मुनि को अहंकार हो गया था कि उनकी नारायण भक्ति और ब्रह्मचर्य को कामदेव भी भंग नहीं कर सके। तब भगवान विष्णु ने उनका अहंकार दूर करने के लिए अपनी माया से एक सुन्दर नगर का निर्माण किया, जहां राजकुमारी के स्वयंवर का आयोजन किया जा रहा था। तभी नारद मुनि भी वहां पहुंच गए और राजकुमारी को देखते ही उस पर मोहित हो गए। उस राजकुमारी से विवाह करने की इच्छा लेकर उन्होंने भगवान विष्णु से उनके जैसा सुन्दर रूप मांगा।

नारद भगवान विष्णु से सुन्दर रूप लेकर राजकुमारी के स्वयंवर में पहुंचे। वहां पहुंचते ही उनका चेहरा बन्दर जैसा हो गया। ऐसा रूप देखकर राजकुमारी को नारदमुनि पर बहुत क्रोध आया और तत्पश्चात भगवान विष्णु राजा के रूप में आए और राजकुमारी को लेकर चले गए। इस बात से क्रोधित होकर नारद जी भगवान विष्णु के पास गए और श्राप दे दिया कि जिस तरह आज मैं स्त्री के लिए व्याकुल हो रहा हूं, उसी प्रकार मनुष्य जन्म लेकर आपको भी स्त्री वियोग सहना पड़ेगा। हालांकि माया का प्रभाव हटने पर नारद जी को बहुत दुख हुआ तो उन्होंने भगवान से क्षमा-याचना की लेकिन तब भगवान विष्णु ने उन्हें समझाया कि ये सब माया का प्रभाव था। इसमें आपका कोई दोष नहीं है।

 

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