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यूपी विधानसभा में अदालत जारी, दोषियों पर करावास का प्रस्ताव स्वीकृत

  • यूपी विधानसभा की अदालत में विशेषाधिकार हनन मामले में हुई सुनवाई

  • दोषियों पर करावास का प्रस्ताव स्वीकृत

  • पुलिस वालों पर लाठीचार्ज का लगा है आरोप

Up Desk:  उत्तर प्रदेश विधानसभा सत्र में लगी अदालत में आज विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना के मामले में 6 पुलिसकर्मी कटघरे में खड़े किए गए है। कोर्ट में तलब करने के बाद कार्यवाही शुरू कर दी गई। इस मामले में सुनवाई करते हुए दोषियों पर करावास का प्रस्ताव स्वीकृत किया गया है।

कटघरे में खड़े होंगे ये 6 पुलिसकर्मी

तत्कालीन क्षेत्राधिकारी बाबू पुरवा कानपुर अब्दुल समद, तत्कालीन थाना अध्यक्ष किदवई नगर ऋषि कांत शुक्ला, तत्कालीन उप निरीक्षक थाना कोतवाली कानपुर त्रिलोकी सिंह, तत्कालीन कांस्टेबल थाना किदवई नगर छोटे सिंह यादव, तत्कालीन कांस्टेबल थाना काकादेव विनोद मिश्र, तत्कालीन कांस्टेबल मेहरबान सिंह यादव को कटघरे में खड़ा किया जाएगा लंबे समय बाद सदन में बड़ी कार्रवाई की आशंका है। सभी दलों के नेताओं और सदस्यों को विशेषाधिकार का हनन के संबंध बैठक में बुलाया गया।

इन पुलिसकर्मियों की कारावास की सजा पर होगी सुनवाई

दरअसल, तत्कालीन क्षेत्राधिकारी अब्दुल समद, तत्कालीन थानाध्यक्ष ऋषिकांत शुक्ला, तत्कालीन उप निरीक्षक त्रिलोकी सिंह, तत्कालीन कांस्टेबल छोटेलाल यादव, विनोद मिश्र और मेहरबान सिंह को कारावास की सजा पर सुनवाई होगी। सभी पुलिसकर्मियों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन से सम्बन्ध रखने वाले प्रस्ताव बीते गुरुवार को सदन में पारित कर दिया गया। जिसके बाद विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने DGP से सभी दोषी पुलिसकर्मियों को आज यानी शुक्रवार को विधानसभा में पेश करने के निर्देश दिए थे। आज सदन में करीब 19 साल बाद इन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई होने जा रही है।

2004 में धरने पर बैठे थे सतीश महाना  

2004 की सपा सरकार में बिजली कटौती के मामले को लेकर विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना कानपुर में धरने पर बैठे थे। उस समय पार्टी के तमाम विधायक व नेता उनके समर्थन में जा रहे थे तो पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया था। इसमें उस समय विधानसभा सदस्य रहे सलिल विश्नोई की टांग टूटी थी और वो महीनों बेड पर रहे। इसके बाद उन्होंने 25 अक्टूबर 2004 को विशेषाधिकार हनन और सदन की अवमानना की सूचना दी थी। सदन में करीब डेढ़ साल सुनवाई हुई जिसके बाद इन पुलिसकर्मियों को सर्वसम्मति से दोषी पाया गया था, लेकिन आज तक सजा नहीं हुई थी।

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