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जामंदी से बना संबंध रेप नहीं,सुप्रीम कोर्ट का फैसला

  • सुप्रीम कोर्ट ने एक शख्स के खिलाफ बलात्कार के आरोपों को खारिज किया

  • रजामंदी से बना संबंध रेप नहीं

  • बलात्कार की शिकायत दर्ज

(नेशनल डेस्क) सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में एक शख्स के खिलाफ लगाए गए बलात्कार के आरोप को खारिज करते हुए साफ कहा है कि आपसी सहमति से बने संबंध में पार्टनर के खिलाफ रेप का आरोप नहीं लगाया जा सकता है. इस मामले में एक महिला के शादी के पहले एक शख्स से संबंध थे और यहां तक ​​​​कि महिला ने इसके कारण तलाक ले लिया. महिला का तलाक होने के बाद भी उसके किसी इस शख्स से लंबे समय से आपसी सहमति के संबंध थे. बाद में जब पुरुष ने किसी और महिला से शादी कर ली और बार-बार दबाव डालने के बावजूद तलाक नहीं लिया तो उसके खिलाफ रेप के मामले की एफआईआर दर्ज कराई गई.

रेप मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिया साफ फैसला (News18)

न्यायमूर्ति एआर दवे और न्यायमूर्ति आर भानुमति की पीठ ने उनकी याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा, “आप एक व्यक्तिगत कारण का समर्थन कर रही हैं, न कि सार्वजनिक कारण का… यह एक व्यक्तिगत मामला है।” महिला ने आईपीसी की धारा 375 के एक अपवाद की वैधता को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया है कि एक पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ, जो 15 साल या उससे अधिक उम्र की है, यौन संबंध बनाना बलात्कार नहीं है, भले ही वह सहमति के बिना ही क्यों न हो।

महिला ने कहा कि प्रावधान, जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।

चूंकि बेंच याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं थी, कॉलिन गोंजाल्विस, जिन्होंने महिला का प्रतिनिधित्व किया, ने इसे वापस लेने का फैसला किया। वरिष्ठ अधिवक्ता ने एचटी को बताया, “हम इस मुद्दे पर फिर से अदालत का रुख करेंगे …. एक महिला संगठन के माध्यम से हो सकता है।”

रजामंदी से बना संबंध रेप नहीं, SC ने आरोपी को किया बरी, दिल्ली HC का फैसला बदला

दिल्ली में रहने वाले नईम अहमद को हाई कोर्ट ने सात साल कैद की सजा सुनाई थी, लेकिन न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने बलात्कार के आरोपों से बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि कई कारणों से सहमति से बने शारीरिक संबंध में खटास आने के बाद अक्सर महिलाओं द्वारा बलात्कार का आरोप लगाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है.

निचली अदालत और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मामले को रद्द कर दिया गया, जिसके बाद महिला ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया. न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने पिछले हफ्ते कहा कि उच्च न्यायालय इस बात की जांच करने में विफल रहा कि क्या महिला द्वारा दर्ज प्राथमिकी में प्रथम दृष्टया मामला बनता है. पीठ ने कहा कि बेशक आरोपी और महिला के बीच 2013 से दिसंबर 2017 तक सहमति से संबंध थे. वे दोनों शिक्षित बालिग हैं. इसी दौरान महिला ने जून 2014 में किसी और से शादी कर ली. महिला के आरोपों से संकेत मिलता है कि आरोपी के साथ उसका संबंध उसकी शादी से पहले, शादी के दौरान और तलाक के बाद भी जारी रहा.

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