संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को रखा जाता है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के संकष्टी चतुर्था व्रत का नाम हेरम्ब है। 7 अगस्त, शुक्रवार यानी आज के दिन यह व्रत रखा जाएगा। संकष्टी चतुर्थी व्रत की इस खास स्टोरी में जानिए संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा –
संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त (Sankashti Chaturthi Shubh Muhurat)
7 अगस्त, शुक्रवार – 02:40 पी एम से 03:34 पी एम तक
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि (Sankashti Chaturthi Puja Vidhi)
- एक चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उसे कलावे से उस पर बांध दें।
- गंगाजल के छींटे मारकर उस जगह की पवित्रता बढ़ाएं।
- उस पर भगवान गणेश की प्रतिमा रखें। दीपक जलाएं। फूलों की माला पहनाएं।
- दूर्वा घास भगवान गणेश के चरणों के पास रखें।
- फिर गणेश स्तुति, गणेश चालीसा, गणेश मंत्र और गणेश आरती करके पूजा संपन्न करें।
- पूजा के बाद भगवान गणेश को लड्डुओं का भोग लगाएं।
संकष्टी चतुर्थी की कथा (Sankashti Chaturthi Vrat Katha)
भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की शादी का समय थे। सभी देवी-देवताओं को बुलाया गया। लेकिन गणेश जी को न्यौता नहीं दिया। भगवान गणेश इससे क्रोधित हुए। अन्य देवी – देवताओं ने बारात में आकर देखा कि सब हैं। लेकिन गणेश नहीं दिख रहे। विष्णु जी से इसका कारण पूछा तो पता चला कि गणेश की ज्यादा खाने की आदात की वजह से विष्णु उन्हें अपनी बारात में नहीं ले जाना चाहते हैं।
एक देवता ने भगवान विष्णु को यह उपाय बतलाया कि आप गणेश को बुलाओ और हम उन्हें विष्णुलोक की रक्षा के लिए यही द्वारपाल बनाकर छोड़ जाएंगे। ऐसा ही किया गया। जब देवऋषि नारद ने गणेश जी को बारात में न जाते देखा तो कारण पूछा। गणेश जी ने उन्हें सारा वृतांत सुनाया।
देवऋषि ने उन्हें एक उपाय बताया कि तुम अपनी चूहों की सेना से आगे का रास्ता खुदवा दो। रथ खुदी हुई जमीन में जा गिरेगा। तो सबको विघ्नहर्ता गणेश को सबसे पहले मनाने का कारण पता लगेगा। गणेश जी ने ऐसा ही किया। रथ थोड़ी दूर जाकर गड्ढे में फंस गया। सभी देवताओं ने कोशिश की। लेकिन नहीं निकला। फिर विघ्नहर्ता गणेश को बुलाकर उनसे क्षमा मांगी गई। तब गणेश जी ने प्रसन्न होकर सभी देवताओं के कहने पर विघ्न हरे।
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