UP निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी करने पर रोक
OBC निकाय चुनाव आरक्षण मामले में सुनवाई कल
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल टेस्ट करनर बताया अनिवार्य
उत्तर प्रदेश। प्रदेश में निकाय चुनाव आरक्षण मामले की सुनवाई की तारीख टलती जा रही है। 21 दिसंबर से 22 दिसंबर की तारीख दी गई है। हाईकोर्ट ने नगर निकाय अधिसूचना जारी करने पर रोक लगाई है। निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण लागू किए जाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में अंतिम सुनवाई जारी है। बुधवार को जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हुई। हालांकि समय की कमी के चलते सुनवाई पूरी नहीं हो सकी। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई गुरुवार को यानी 22 दिसंबर तय की है। राज्य सरकार की ओर से मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल किया जा चुका है। इस पर याचियों के वकीलों ने प्रति उत्तर भी दाखिल कर दिए हैं। हालांकि समय की कमी के चलते सुनवाई पूरी नहीं हो सकी।
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न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने यह आदेश रायबरेली निवासी सामाजिक कार्यकर्ता वैभव पांडेय व अन्य की जनहित याचिकाओं पर दिया। बुधवार दोपहर 2: 45 बजे से शुरू हुई बहस के दौरान याचियों की ओर से दलील दी गई कि निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है। इसका सामाजिक, आर्थिक अथवा शैक्षिक पिछड़ेपन से कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में ओबीसी आरक्षण तय किए जाने से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था के तहत डेडिकेटेड कमेटी द्वारा ट्रिपल टेस्ट कराना अनिवार्य है।
राज्य सरकार ने दाखिल किए गए अपने हलफनामे में कहा है कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए। सरकार ने कहा है कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए। कहा है कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किन प्रावधानों के तहत निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई है? इस पर सरकार ने कहा कि 5 दिसंबर 2011 के हाईकोर्ट के फैसले के तहत इसका प्रावधान है।
जनहित याचिकाओं में निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का उचित लाभ दिए जाने व सीटों के रोटेशन के मुद्दे उठाए गए हैं। याचियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत जब तक राज्य सरकार तिहरे परीक्षण की औपचारिकता पूरी नहीं करती तब तक ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं दिया जा सकता। राज्य सरकार ने ऐसा कोई परीक्षण नहीं किया। यह भी दलील दी कि यह औपचारिकता पूरी किए बगैर सरकार ने गत 5 दिसंबर को अनंतिम आरक्षण की अधिसूचना के तहत ड्राफ्ट आदेश जारी कर दिया। इससे यह साफ है कि राज्य सरकार ओबीसी को आरक्षण देने जा रही है। साथ ही सीटों का रोटेशन भी नियमानुसार किए जाने की गुजारिश की गई है।
क्या है ट्रिपल टेस्ट ?
ट्रिपल टेस्ट एक ऐसी प्रक्रिया है जो आरक्षण की व्यवस्था में बदलाव करने से पहले लागु होता है। इस प्रक्रिया में तीन चरणों में मूल्यांकन होता है।
पहले चरण में एक आयोग का गठन होता है। दूसरे चरण में आयोग की सिफारिश लागू करने से पहले स्थानीय निकायों के बीच आरक्षण प्रतिशत विभाजित किया जाता है । जिससे की किसी के साथ कोई भेदभाव न हो और किसी को कोई शिकायत भी न रहे। तीसरे चरण में आरक्षण प्रतिशत में इस तरह से बदलाव किया जाता है कि सभी कोटियां में कुल आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी से ज्यादा किसी कीमत पर नहीं रहे।
ट्रिपल टेस्ट नहीं होने पर सीट रहेंगी सामान्य
पिछड़े वर्ग के लोगों की सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षणिक स्थिति जानने के बाद ही इसपर कुछ तय किया जाता है। इस टेस्ट में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के पक्ष में कुल आरक्षित सीटों का प्रतिशत 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए। जब तक तीन स्तरीय जांच पूरी नहीं हो जाती, इन सीटों को सामान्य कैटेगरी में मानकर ही चुनाव कराए जाते हैं।
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