शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का निधन
99 साल की उम्र में ली अंतिम सांस
1981 में मिली थी शंकराचार्य की उपाधि
नेशनल डेस्क: जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज का आज यानी रविवार 11 अगस्त को निधन हो गया। 99 वर्षीय स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज दो मठों द्वारका एवं ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य थे। उन्होंने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के परमहंसी गंगा आश्रम में दोपहर 3.30 मिनट पर आखिर सांस ली। जगद्गुरु शंकराचार्य लंबे समय से बीमार चल रहे थे।
उनका जन्म 2 सितंबर 1926 को मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के दिघोरी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता – पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। बचपन से ही उनका झुकाव अध्यात्म की तरफ था। महज 9 साल की उम्र में गर छोड़ धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी। इस दौरान उन्होंने काशी पहुंचकर ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महराज वेद – वेदांग शास्त्रों की शिक्षा ली।
आजादी की लड़ाई में भी लिया था हिस्सा
जगद्गुरु शंकराचार्य श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज की पहचान युवा अवस्था में एक क्रांतिकारी साधु की थी। साल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में वो भी शामिल हुए थे। उस समय उनकी उम्र मात्र 19 वर्ष थी। आजादी की लड़ाई लड़ने के दौरान उन्हें काशी की जेल में 9 और मध्य प्रदेश की जेल में 6 महीने की सजा काटनी पड़ी थी। इस दौरान वो करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे।
1981 में मिली थी शंकराचार्य की उपाधि
स्वामी स्वरूपानंद 1950 में ज्योतिषपीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड – सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के नाम से जाने जाने लगे। उन्हें साल 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली थी। वे 1982 में गुजरात में द्वारका शारदा पीठ और बद्रीनाथ में ज्योतिर मठ के शंकराचार्य बने थे।