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त्रेता युग से चढ़ रही है गुरु गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा,नेपाली श्रद्धालुओं में भी उत्साह

  • त्रेता युग से चढ़ रही है गुरु गोरक्षनाथ को खिचड़ी

  • धूमधाम से मनाई जाएगी मकर संक्रांति

  • मकर संक्रांति पर्व को लेकर नेपाली श्रद्धालुओं में भी उत्साह

(उत्तरप्रदेश डेस्क) महायोगी श्री गुरु गोरक्षनाथ को मकर संक्रांति पर चढ़ाई जाने वाली खिचड़ी सिर्फ पर्व नहीं बल्कि पूरे साल गरीबों की दुआएं लेते हुए पुण्य कमाने का रास्ता भी है। मकर संक्रांति का पर्व इस बार 15 जनवरी दिन रविवार को मनाया जाएगा। मकर सक्रांति के मौके पर गोरखपुर के गुरु गोरखनाथ मंदिर में त्रेतायुग से खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है. यहां लाखों की संख्या में मकर सक्रांति के दिन श्रद्धालु खिचड़ी चढ़ाने गोरखनाथ मंदिर में पहुंचते हैं. इनमें नेपाल के श्रद्धालुओं भी शामिल होते हैं. ऐसी मान्यता है कि मंदिर में नेपाल के राजा की खिचड़ी सबसे पहले चढ़ती है. इसके बाद बाकी श्रद्धालु खिचड़ी चढ़ाते हैं.

Gorakhpur-temple

ज्योतिर्विद पंडित नरेंद्र उपाध्याय के अनुसार, मकर संक्रांति पुण्यकाल में पवित्र नदियों में स्नान करके एक तांबे के लोटे में शुद्ध जल लेकर उसमें रोली, अक्षत, लाल पुष्प, तिल और गुड़ मिलाकर पूर्वा दिशा की ओर मुख करके खड़े हो जाएं, दोनों हाथों को ऊपर उठाकर सूर्यदेव को श्रद्धापूर्वक गायत्री मंत्र या ‘ॐ घृणि सूर्याय नम: श्री सूर्य नारायणाय अर्घ्यं समर्पयामि।’ मंत्र का जाप कर अर्घ्य दें।

खिचड़ी चढ़ाने को लेकर सोनौली सीमा पर तैयारियां पूरी

गोरखनाथ मंदिर में आयोजित होने वाले खिचड़ी मेले को देखते हुए नेपाली यात्रियों की सुविधाओं की विशेष व्यवस्था की जा रही है. इस बार के मेले में यात्रियों की सुविधा के लिए सोनौली डिपो में रोडवेज की बसों की संख्या बढ़ा दी गई है. वहीं, नौतनवा से गोरखपुर के लिए स्पेशल ट्रेन भी चलाई जा रही है, ताकि श्रद्धालुओं के आवागमन में किसी भी तरह की दिक्कत न हो.

गोरखनाथ खिचड़ी मेला।

ऐसे शुरू हुई खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा

मान्यता है कि महायोगी गुरु गोरक्षनाथ एक बार हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित मां ज्वाला देवी के दरबार मे पहुंचे। मां ने उनके भोजन का प्रबंध किया। कई प्रकार के व्यंजन देख बाबा ने कहा कि वह तो योगी हैं। भिक्षा में जो भी हासिल होता है, उसे ही भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। उन्होंने मां ज्वाला देवी से पानी गर्म करने का अनुरोध किया और स्वयं भिक्षाटन के लिए चले गए। भिक्षा मांगते हुए वह गोरखपुर आ पहुंचे। राप्ती व रोहिन के तट पर जंगलों में बसे इस स्थान पर धूनी रमाकर साधनालीन हो गए। उनका तेज देख तभी से लोग उनके खप्पर में अन्न (चावल, दाल) दान करते रहे। इस दौरान मकर संक्रांति का पर्व आने पर यह परंपरा खिचड़ी पर्व के रूप में परिवर्तित हो गई। वह दिन और आज का दिन, बाबा गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने का सिलसिला थमा नहीं है। दंतकथा है कि मां ज्वाला देवी के दरबार में बाबा की खिचड़ी पकाने के लिए आज भी पानी उबल रहा है।

गोरखनाथ खिचड़ी मेला।

खिचड़ी मेला सजकर तैयार, पहुंचने लगे श्रद्धालु

मकर संक्रांति पर गोरखनाथ मंदिर परिसर में लगने वाला खिचड़ी मेला सजकर तैयार हो गया है। श्रद्धालु लगभग एक महीने तक मेले का लुत्फ उठा सकेंगे। गुरु गोरक्षनाथ को खिचड़ी चढ़ाने के श्रद्धालुओं के मंदिर पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है। श्रद्धालुओं के रहने के लिए मंदिर प्रशासन की तरफ से हिंदू सेवाश्रम, यात्री निवासी, पर्यटक सुविधा केंद्र में रहने की व्यवस्था की गई है। कई स्थानों पर स्थायी और अस्थायी शौचालय का निर्माण कराया गया है। नगर निगम व बिजली निगम व्यवस्था में लगा हुआ है।

Makar Sankranti 2023: त्रेतायुग से गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा, जानिए नेपाली नागरिकों के लिए क्यों है खास?

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