सीपीएम-कांग्रेस गठबंधन ने सीट शेयरिंग फॉर्मूले का किया ऐलान
जानें कितने सीटों पर लड़ेगी दोनों पार्टियां
2018 में कैसा रहा था प्रदर्शन ?
Tripura Assambly Election 2023:. उत्तर पूर्वी राज्य त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक, अगले माह यानी फरवरी की 16 तारीख को मतदान और दो मार्च को नतीजे आएंगे। त्रिपुरा में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए दो पुराने कट्टर सियासी प्रतिद्वंदी सीपीएम और कांग्रेस ने हाथ मिला लिया था। अब इस गठबंधन ने सीट शेयरिंग फॉर्मूले का ऐलान कर दिया है। जानकारी के मुताबिक, 60 सीटों वाली त्रिपुरा विधानसभा में सीपीएम 47 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेगी और बाकी के 13 सीटों पर कांग्रेस के कैंडिडेट चुनाव मैदान में होंगे।
इसी माह की 13 तारीख को राजधानी अगरतला में कांग्रेस महासचिव अजय कुमार और सीपीएम के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी के बीच हुई बैठक के बाद गठबंधन का ऐलान किया गया था। इससे पहले 11 जनवरी को सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कह दिया था कि बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए वे कांग्रेस के साथ जाने के लिए तैयार हैं।
त्रिपुरा में 53 सालोम तक कांग्रेस और सीपीएम का राज रहा है। इनमें 35 साल सीपीएम का और 18 साल कांग्रेस का शामिल है। दोनों पार्टियां राज्य में एक – दूसरे की कट्टर प्रतिद्वंदी रही हैं। सीपीएम ने कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाकर ही 1993 से लेकर 2018 तक राज्य की सत्ता पर काबिज रही थी। बीजेपी के उभार के बाद राज्य का सियासी समीकरण पूरी तरह बदल गया। कांग्रेस का जहां पूरी तरह से सफाया हो गया, वहीं पश्चिम बंगाल के बाद सीपीएम के हाथ से त्रिपुरा के रूप में एक और गढ़ से हाथ से निकल गया। अतीत में इन दोनों पार्टियों के शासनकाल में विरोधी दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ जमकर राजनीतिक हिंसा हुई, जिसे भुलाकर अब ये एकसाथ चुनाव मैदान में बीजेपी को हराने उतरे हैं।
2018 में कैसा था प्रदर्शन ?
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पहली बार जीत हासिल करते हुए त्रिपुरा में 25 साल के वामपंथी शासन का अंत कर दिया था। इस चुनाव में बीजेपी को 35 और सहयोगी दल आईपीएफटी को 8 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं, सीपीएम 16 सीटों पर सिमट कर रह गई थी। कांग्रेस का तो खाता तक नहीं खुल सका।
बंगाल में प्रयोग हो गया था असफल
सीपीएम और कांग्रेस इससे पहले भी एक राज्य में गठबंधन कर विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। दोनों दलों ने साल 2021 में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी के खिलाफ गठबंधन किया था। इसमें इंडियन सेक्लुयर फ्रंट नामक एक मुस्लिम नेता की पार्टी भी शामिल थी। जब नतीजे आए तो कांग्रेस और लेफ्ट इतिहास में पहली बार शून्य पर सिमट गए। 64 साल तक बंगाल पर राज करने वाली लेफ्ट और कांग्रेस के एक भी कैंडिडेट चुनाव नहीं जीत पाए थे। ऐसे में पड़ोसी त्रिपुरा में उनका यह प्रयोग कितना सफल होगा, ये चुनाव परिणाम बताएंगे।