योगिनी एकादशी में व्रत कथा का भी विशेष महत्व
मान्यता है कि व्रत कथा को पढ़ने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है
इस कथा को सुनने का फल ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान
Yogini Ekadashi Vrat 2022: आज हम आपको जो व्रत कथा सुनाने जा रहे हैं उसकी महिमा की व्याख्या करते हुए स्वयं सृष्टि के उत्पन्न कर्ता श्रीकृष्ण ने कहा था कि इस कथा को सुनने का फल 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान है। तो चलिए योगिनी एकादशी व्रत कथा का वाचन आरंभ करते हैं-
इस कथा की जड़ें महाभारत काल से जुड़ी हुईं हैं। एक बार कुंती पुत्र अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से आग्रह किया कि- ‘हे त्रिलोकीनाथ! मैंने ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी की कथा सुनी है,अब आप कृपा करके आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुनाइए और इस एकादशी के महात्म्य के विषय में विस्तार से बताइए।’
भगवान श्रीकृष्ण यह सुनकर बोले, “हे पार्थ! आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत इस जगत में सुख और परलोक में मुक्ति प्रदान करने वाला है। हे पाण्डु पुत्र! इस एकादशी की महिमा तीनों लोकों में फैली हुई है। अब मैं तुम्हें पुराणों में वर्णित एकादशी व्रत कथा सुनाता हूं, इसका ध्यानपूर्वक श्रवण करना-
एक समय में अलकापुरी नामक नगरी पर भगवान शिव के परम भक्त राजा कुबेर राज किया करते थे। उनके महल में हेममाली नामक एक यक्ष सेवक काम किया करता था, जो पूजा के लिए फूल लाया करता था। उसकी हेममाली की विशालाक्षी नाम की अत्यंत सुन्दर पत्नी थी।
एक दिन वह मानसरोवर से पूजा के लिए पुष्प तो लाया किंतु कामासक्त होने के कारण पुष्पों को रखकर अपनी स्त्री के साथ रमण करने लगा। इस भोग विलास में दोपहर हो गई और वह राजा की पूजा के लिए फूल ले जाना भूल गया।
राजा कुबेर सुबह से ही हेममाली की प्रतीक्षा कर रहे थे, जब उन्हें उसकी राह देखते-देखते दोपहर हो गई तो क्रोधित होकर उन्होंने अपने सेवकों को हेममाली को खोजने के आदेश दिया। सेवकों ने उसके पता लगाया और राजा को उसके द्वारा किए गए अपराध की जानकारी दी। सेवकों ने राजा से कहा कि ‘हे राजन! वह हेममाली अपनी स्त्री के साथ रमण कर रहा है।’
इस बात को सुनकर राजा कुबेर के सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने अपने सेवकों को हेममाली को उनके समक्ष लाने की आज्ञा दी। हेममाली डर से कांपते हुए राजा से समक्ष उपस्थित हुआ। भगवान शिव की पूजा की अवहेलना पर क्रोधित राजा कुबेर उसे देखकर बोले- अरे अधर्मी! ‘तूने मेरे परम पूजनीय देवों के भी देव भगवान शिवजी का अपमान किया है। मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तू स्त्री के वियोग में तड़पेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी का जीवन व्यतीत करेगा।’
इस श्राप के परिणामस्वरूप, वह उसी क्षण स्वर्ग से पृथ्वी पर जा गिरा और कोढ़ी हो गया। अपनी पत्नी से भी वह बिछड़ गया और अनेक कष्टों को भोगते हुए अपना जीवन व्यतीत करने लगा। लेकिन भगवान शिव जी कृपा से उसकी बुद्धि मलिन नहीं हुई और उसे अपने पूर्व जन्म का स्मरण रहा। भयंकर कष्टों का सामना करते हुए और अपने कुकर्मों पर पश्चाताप करते हुए वह हिमालय पर्वत की तरफ चल पड़ा।
चलते-चलते वह एक अत्यंत वृद्ध तपस्वी, मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुँचा। वह दूसरे ब्रह्मा के समान प्रतीत हो रहे थे और उनका वह आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान शोभामान था। ऋषि को देखकर हेममाली वहाँ गया और उन्हें प्रणाम करके उनके चरणों में गिर पड़ा। हेममाली को देखकर मार्कण्डेय ऋषि ने कहा: तूने कौन-से निकृष्ट कर्म किए हैं, जिससे तू कोढ़ी हुआ और इस प्रकार भयानक कष्ट भोग रहा है।
महर्षि की बात सुनकर हेममाली बोला: हे मुनि श्रेष्ठ! मैं राजा कुबेर का अनुचर था। मेरा नाम हेममाली है। मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर शिव पूजा के समय कुबेर को दिया करता था। एक दिन पत्नी सहवास के सुख में फँस जाने के कारण मुझे समय का ज्ञान ही नहीं रहा और दोपहर तक पुष्प न पहुँचा सका।
तब उन्होंने मुझे श्राप दिया कि अपनी स्त्री का वियोग और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी बनकर दुख भोगेगा। इस कारण मैं कोढ़ी हो गया हूँ तथा पृथ्वी पर आकर भयंकर कष्ट भोग रहा हूँ, अतः कृपा करके आप कोई ऐसा उपाय बतलाए, जिससे मुझे मुक्ति मिल सके।
मार्कण्डेय ऋषि ने कहा: ‘हे हेममाली! तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए मैं तेरे उद्धार के लिए एक व्रत बताता हूँ। यदि तू आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।’
महर्षि के वचन सुन हेममाली अति प्रसन्न हुआ और उनके वचनों के अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत पूरे विधि-विधान से करने लगा। इस व्रत के प्रभाव से वो अपने पुराने स्वरूप में आ गया और अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।
भगवान श्री कृष्ण ने कथा का समापन करते हुए कहा कि: हे राजन! इस योगिनी एकादशी की कथा का फल 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है। इस व्रत से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में प्राणी मोक्ष प्राप्त करके स्वर्ग का अधिकारी बनता है।