गीता प्रेस का इतिहास और कैसे हुई इसकी स्थापना
गीता प्रेस के इतिहास के बारे में जानें
गीता प्रेस की किताबें चालीस से नब्बे फीसदी तक सस्ती
एधार्मिक पुस्तकों के लिए विश्वविख्यात गोरखपुर का गीता प्रेस समय के साथ ही अपनी ख्याति बढ़ाते जा रहा है।यहां के प्रबंधन की माने तो गीता प्रेस मुनाफा कमाने वाले संस्थान की तरह नही बल्कि लोगो को सही राह दिखाने वाले संगठन की तरह काम करता है।क्या है गीता प्रेस का इतिहास और कैसे हुई इसकी स्थापना देखिये इस विशेष रिपोर्ट में अपने दायित्वों का वर्षो से बखूबी निर्वहन कर रहे ये है गीता प्रेस के प्रोडक्शन मैनेजर लालमणि तिवारी जी इन्होंने गीता प्रेस के इतिहास के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि आजादी से पहले की बात है जब कोलकाता के मशहूर सेठ जयपाल गोयनका ने लोगों को सुनाने के लिए एक प्रिंटिंग प्रेस से गीता छपवाई लेकिन छपी हुई गीता में मात्रा और वर्तनी की बड़ी गलतियां देखकर वो मायूस हो उठे यहीं से उनके मन में एक ऐसे प्रिंटिग प्रेस की स्थापना का ख्याल आया आया जो सस्ता और बिना गलतियों वाला धार्मिक साहित्य छापे उनकी बात गोरखपुर के बड़े कारोबारी घनश्यामदास जालान से हुई और देखते ही देखते महज दस रुपये के किराए के मकान से गीता प्रेस की शुरुआत हो गई।
समय समय पर गीता प्रेस के बंद होने की अफवाह पर प्रोडक्शन मैनेजर लालमणि जी बताते है गीता प्रेस पर कभी भी बंद होने का संकट आया ही नही हां वर्ष 2015 में कुछ मामला हुआ जरूर था लेकिन बंद होने जैसी बातें नही थी दरअसल गीता प्रेस की स्थापना के वक्त ही ये तय हो गया था कि इसका मकसद मुनाफा कमाना नहीं है।स्थापना के वक्त ही ये किया गया कि गीता प्रेस एक पैसा भी दान में नहीं लेगा। आशंका थी कि चंदा लेने से संपादकीय निष्ठा पर दबाव पड़ सकता है। फिर भी गीता प्रेस किताबों की कीमत लागत से भी कम रखी गई।गीता प्रेस की किताबें चालीस से नब्बे फीसदी तक सस्ती हैं।
आज भी गीता और मानस के संस्करण दस से सौ रुपये में मिलते हैं। गीता प्रेस की हनुमान चालीसा की कीमत महज 2 रुपये है। मांग पूरी करने के लिए यहां सालाना हनुमान चालीसा की 50 लाख से अधिक प्रतियां छपती हैं।सस्ती कीमत के बावजूद किताबों की छपाई बेहतरीन और गलतियां न के बराबर होती हैं। यही नहीं गीता प्रेस ने तमाम भाषाओं में सटीक अनुवाद भी सस्ती कीमत पर पाठकों तक पहुंचाया है और आय दिन और बेहतर बनाने के लिए आधुनिक मशीने भी लायी जाती है।उन्होंने कहा कि आज भी गीता प्रेस में साढ़े चार सौ के आसपास कर्मचारी काम करते है।
वहीं कुछ कम दामों की पुस्तको पर अधिक पैसा लेने के सवाल पर उन्होंने कहा कि कुछ ई कामर्स कम्पनियां ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए बड़े कम्पनियों के जो ब्रांड है उनके प्लेटफार्म पर अधिक मूल्यों में बेंच दे रहे है हम अपने पाठकों को जागरूक कर रहे है कि वो हमारी पुस्तको को हमारी ही बेवसाइट से मंगाए।