सोशल मीडिया पर केंद्र सरकार की सख्ती सही
स्वतंत्रता का इस्तेमाल धार्मिक समुदायों के बीच नफरत फैलाने में ना करे
ध्यान में रखें वर्तमान समय हमारी परीक्षा का समय है
नेशनल डेस्क:बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक याचिका की सुनवाई के दौरान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और भड़काऊ पोस्ट पर यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की। पीठ ने कहा दो धार्मिक समुदायों के बीच नफरत के बीज बोने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। खासकर फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए। भड़काऊ पोस्ट और संदेश सार्वजनिक सद्भाव को खराब करने की क्षमता रखते हैं।
विशेष रूप से, सोशल मीडिया पर पोस्ट करते समय इसे ध्यान में रखें, क्योंकि वर्तमान समय हमारी परीक्षा का समय है। पीठ ने कहा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में दूसरों की आस्था को चोट नहीं पहुंचनी चाहिए। आलोचना निष्पक्ष और रचनात्मक होनी चाहिए। संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का तर्कसंगत उपयोग किया जाना चाहिए।
मुख्य मजिस्ट्रेट दीपांकर दत्ता और जज माधव जामदार की पीठ ने कहा, भारत जैसे सेक्युलर (धर्मनिरपेक्ष) देश में लोगों को यह महसूस करना चाहिए कि वे अन्य धर्मों के सदस्यों के साथ शांति से रह सकते हैं। लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और बोलने की आजादी का उपयोग अनुशासित होने और खुद पर तर्कसंगत प्रतिबंध लगाने के लिए करना चाहिए।
बता दें, पीठ ने ये सभी बातें एक याचिकाकर्ता इमरान खान द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए कही। याचिका में दावा किया गया था कि एआईएमआईएम समर्थक अबू फैजल फेसबुक और सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक और भड़काऊ पोस्ट कर रहा था, जिससे सामाजिक सद्भाव
बिगड़ सकता है।
अनुच्छेद 19 (2) द्वारा सरकार लगा सकती है अंकुश
पीठ ने सोशल मीडिया पर केंद्र सरकार की सख्ती का भी समर्थन किया और कहा कि संविधान का अनुच्छेद 19 (2) सरकार को कानून के अनुसार उचित कारणों के आधार पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाने का अधिकार देता है। सरकार अनुच्छेद 19 (2) द्वारा दी गई शक्ति का उपयोग सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट को पूरी तरह से रोकने के लिए कर सकती है।
नोडल अधिकारी के पास शिकायत रखी जाए
वहीं सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील विवेक शुक्ला ने कहा कि फैजल के खिलाफ पुलिस में शिकायत की गई थी। लेकिन पुलिस इस मामले में पूरी तरह से अयोग्य है। याचिकाकर्ता ने इस मामले में उच्च न्यायालय से पुलिस को निर्देश देने की अपील की।
इसके साथ ही, फैजल ने अपलोड किए गए वीडियो को हटाने का भी अनुरोध किया। फेसबुक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डी खम्बाटा ने कहा कि फैजल का सोशल मीडिया पहुंच अदालत के आदेशों या केंद्र सरकार के आदेशों पर ब्लॉक हो सकता है।
सभी पक्षों को सुनने के बाद, पीठ ने याचिकाकर्ता को सूचना प्रौद्योगिकी कानून के तहत केंद्र सरकार के तहत संबंधित नोडल अधिकारी के पास अपनी शिकायत रखने के लिए कहा। साथ ही कोर्ट ने पुलिस को फैजल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश देने से भी इनकार कर दिया।