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नई हिंदी मसाला नूडल्स की तरह स्पाइसी है, आनंद लीजिये चिढ़िये नहीं


    अंकुश त्रिपाठी

हम भारतीय जैसे भी हों हर चीज का देसीकरण करना बखूबी जानते हैं। उदाहरण के तौर पर नूडल्स को ही ले लें। चीन, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम, हांगकांग में यह चाहे जैसे भी बनती हो, उसका जो भी स्वाद हो (अभी तक मैंने चखा नहीं है), लेकिन भारत में यह बिना मसाले के मजा ही नहीं देती। मसाला नूडल्स का जो स्वाद है, वह बेस्वाद सूपी और ओरिजिनल कही जाने वाली नूडल्स में नहीं मिलेगा। केवल खाने-पीने तक ही नहीं पहनने, ओढ़ने और बोलचाल में भी हम ऐसा ही करते आये हैं। हमने भाषाओं को भी नहीं छोड़ा है, उसके साथ भी तमाम प्रयोग किये हैं, यहां सहिष्णुता की पराकाष्ठा भी पार हो गई है।

अब आज की हिंदी को ही ले लें, या दूसरी उत्तर भारतीय बोलियां हर जगह मसालों का मिश्रण मिलेगा ही मिलेगा। मुगलों का शासन था तो बोलचाल की भाषा में बदलाव आया, उसमें तमाम आयातित शब्दों, वाक्यांशों ने जगह बनाई। यह देसीकरण का ही नतीजा रहा कि लोगों ने इसे सहज ढंग से स्वीकार किया। बाद में अंग्रेजी शासन आया तो आम बोलचाल की भाषा में उनके शब्द भी हमारी वर्तनी में गुंथ गए। उदाहरण के तौर पर लॉर्ड साहब भले ही पदवी रही हो, लेकिन आज बोलचाल में इसका इस्तेमाल मजेदार है।

फ़ारसी प्रभाव के नाते शब्दकोश में जुड़े गरदन, गरदा, गरम, गरमागरम, कागज़, आजिज़, कनीज, कमीना, जिन्दगी को ही ले लें। बहुत कम लोग यह समझते होंगे कि ये हिंदी शब्दकोश के शब्द नहीं हैं। अरब का प्रभाव रहा तो गद्दार, कलमा, आदाब, इन्कार, कज़ा(मृत्यु), कत्ल, इनायात, इमारत जैसे असंख्य शब्द हमारे बोलचाल का हिस्सा बने। अंग्रेजी को देखें तो प्रॉब्लम, फोर्स, मोबाइल, डिसमिस, ब्रैड, अंडरस्टैंडिंग, मार्केट, शर्ट, शॉपिंग, ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर, लेट, वाइफ, हस्बैंड, सिस्टर, फादर, मदर, फेस, माउथ, गॉड, कोर्ट, लैटर, मिल्क, शुगर टी, सर्वेंट, थैंक यू, डैथ, एक्सपायर, बर्थ, हैड, हेयर, एक्सरसाइज, वॉक, बुक, चेयर, सुप्रीमकोर्ट, हाईकोर्ट, कलेक्टर, डिप्टी, मेयर, मजिस्ट्रेट, मोबाईल, टेलीविजन, हॉस्पिटल, मार्केट, लोन, इंटरेस्ट, डेबिट, क्रेडिट, यहां तक कि हिंदी फिल्मों के नाम भी अंग्रेजी हिंदी के मिलेजुले शब्दों के साथ ही बन रहे हैं।

यह अंगीकरण हमारी हिंदी को कमजोर नहीं बना रहा है, बल्कि उसे थोड़ा मॉडिफाई कर रहा है यह समय के साथ जरूरी भी है। हां इस बात पर गौर किया जा सकता है, कि जो शब्द विलुप्त हुए हैं उनको संजोया जाए, उपयोग को बढ़ावा दिया जाए। पर यह बात भी गौर करने लायक है कि जो सुविधाजनक है, वही चलेगा भाषा बाजार के नियंत्रण में है और नई वाली हिंदी के जरिये बाजार संवाद की नई और व्यापक शैली को विकसित कर रहा है। यह अब शिशु नहीं रही बल्कि मोबाईल हैंडसेट और उसके ऑपरेटिंग सिस्टम की तरह ही तेजी अपडेट हो रही है। इसलिए इस अंगीकरण को स्वीकार कीजिये और आप भी हिंदी को विश्वभाषा बनाने की दौड़ को तेज कीजिये। नई हिंदी चिढ़ने के लिए नहीं मुस्कुराने के लिए है। यह मसाला नूडल्स की तरह स्पाइसी है जो सबको पसंद आ रही है।

 

                                                                                             लेखक – ऊर्जा मन्त्री , उत्तर प्रदेश सरकार के जनसंपर्क अधिकारी हैं……

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