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कैसे शुरू हुआ था अनंत चतुर्दशी का व्रत और क्या है इसका महत्व?

  • ऋषि कौंडिन्य ने किया था भगवान विष्णु के डोरा का अनादर
  • अनंत चतुर्दशी को डोरे की पूजा का अधिक महत्व
  • 14 वर्षों तक किया था युधिष्ठिर ने किया था ये व्रत

धर्म डेस्क: अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन भगवान गणेश की पूजा के साथ-साथ उनका विसर्जन भी किया जाता है। मगर इस दिन का इतना महत्व क्यों है? तथा इससे जुड़ी कथा क्या है? इस बारे में बहुत कम लोगों को पता है।

तो चलिए जानते हैं अनंत भगवान से जुड़ी हुई पुरानी कथा तथा साथ ही जानेंगे इस दिन का डोरे से क्या संबंध है व इसका क्या महत्व है?

कथाओं के अनुसार विशिष्ट गोत्री सुमंत नामक ब्राह्मण का विवाह महर्षि भृगु की पुत्री दीक्षा से हुआ था। जिनकी एक पुत्री हुई सुशीला। पत्नी की मृत्यु के बाद सुमंत ने कक्षा नामक स्त्री से दूसरा विवाह संपन्न किया तथा सुशीला का विवाह ब्राह्मण सुमंत ने कौंडिन्य ऋषि के साथ कर दिया। विदाई के समय सुमंत ने दमाद को भोजन से बचे हुए पदार्थों को पाथेय के रूप में दिया। जिसके बाद कौंडिन्य ऋषि अपनी पत्नी को साथ लेकर आश्रम की ओर निकल पड़े। रास्ते में शाम ढलने लगी, ऋषि नदी के किनारे संध्या वंदन करने लगे।

इसी दौरान सुशीला ने देखा कि बहुत सारी महिलाएं किसी देवता की पूजा कर रही हैं। सुशीला ने उनसे पूछा कि वो किसकी प्रार्थना कर रही हैं, जिस पर उन महिलाओं ने उन्हें भगवान अनंत की पूजा का महत्व बताया। सुशीला ने जब महिलाओं से इस व्रत के महत्व के बारे में जाना, तो उसने इस व्रत का अनुष्ठान किया एवं 14 गांठ वाला डोरा हाथ में बांधकर ऋषि के पास आ गई। ऋषि ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उन्होंने सारी बात बताई। ऋषि ने यह सब कुछ मानने से मना कर दिया और पवित्र धागे को निकालकर अग्नि में डाल दिया। इस कर्म के चलते धीरे-धीरे उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई और वह बहुत दुखी रहने लगे। जब एक बार उन्होंने अपनी पत्नी सुशीला से इस बारे में बात कि तो उन्होंने इसका कारण भगवान का डोरा जलाना बताया।

जिसके बाद ऋषि ने पश्चाताप करते हुए अनंत डोरी की प्राप्ति के लिए वन में जाने का विचार किया और कई दिनों तक वन में भटकते रहे। एक दिन वह भटकते-भटकते भूमि पर गिर पड़े। तब भगवान अनंत प्रकट होकर बोले हे कौंडिन्य! ऋषि तुमने मेरा तिरस्कार किया था, जिस कारण तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा अब तुमने पश्चाताप किया है। इसलिए मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। 14 वर्षों तक व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा तथा धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे। ऋषि ने ठीक वैसे ही किया इसके बाद उनके सारे क्लेश दूर हो गए।

एक अन्य कथा के अनुसार श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी भगवान अनंत का 14 वर्षों तक विधि पूजन किया था। जिसके प्रभाव से ही पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए थे। मान्यताओं के अनुसार इसके बाद से ही अनंत चतुर्दशी का व्रत प्रचलन में आया था

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