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Kanwar Yatra 2022 : जानिए कांवड़ यात्रा का क्या है महत्व और इतिहास

  • सावन माह के दौरान गंगा जल से भगवान भोलेनाथ का करते हैं जलाभिषेक 

  • कांवड़ यात्रा को लेकर हिंदू धर्म में कई तरह की मान्यताएं है

  • जानिए कांवड़ यात्रा का क्या है महत्व और इतिहास

Kanwar Yatra 2022: कांवड़ यात्रा को लेकर एक और मान्यता यह है कि इस यात्रा की शुरुआत त्रेता युग में श्रवण कुमार द्वारा की गई थी। अपने माता-पिता की इच्छा पूर्ति के लिए श्रवण कुमार ने कांवड़ लाया था और इसी कांवड़ में श्रवण ने अपने माता पिता को बैठा कर उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा स्नान करवाया। श्रवण लौटते वक्त गंगाजल को वह अपने साथ भी ले आए थे और इसी जल से उन्होंने भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था।

कांवड़ यात्रा का इतिहास (Kanwar Yatra Ka Itihas) काफी प्राचीन है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव के महान भक्त भगवान परशुराम ने पहली बार इस कांवर यात्रा को श्रावण महीने के दौरान किया था। तभी से यह कांवड़ यात्रा संतों द्वारा की जा रही है और 1960 में प्रकाश में आई। कांवर यात्रा मुख्य रूप से श्रावण मास के दौरान मनाई जाती है। इस कांवड़ यात्रा में पुरुष भी नहीं बल्कि महिला भक्त भी भाग लेते हैं।

 COVID महामारी के कारण 2020 और 2021 के दौरान पिछले दो वर्षों से कांवड़ यात्रा नहीं हुई। हालांकि अब महामारी के बाद अलग-अलग जगहों पर करोड़ों श्रद्धालु उत्तराखंड पहुंच रहे हैं। इस वर्ष, कांवड़ यात्रा 14 जुलाई, 2022 को शुरू हुई है और यह शिवरात्रि के दिन तक जारी रहेगी, जो मंगलवार 26 जुलाई, 2022 को मनाई जाएगी।

पूजा के इस रूप का अभ्यास करके, कांवरिया आध्यात्मिक विराम लेते हैं और अपनी यात्रा के दौरान शिव मंत्र और भजनों का जाप करते हैं। कई एनजीओ और समूह कांवड़ियों को पानी, भोजन, मिठाई, फल, चाय, कॉफी प्रदान करने वाले शिविरों का आयोजन करते हैं और भक्तों के आराम करने की उचित व्यवस्था करते हैं। साथ ही भक्तों के लिए भी चिकित्सा सुविधाएं प्रदान करते हैं।

कांवड़ यात्रा को चार प्रकार में बांटा भी गया है जो इस प्रकार है।

सामान्य कांवड़ यात्रा : सामान्य कांवड़ यात्रा शिव के भक्तों के लिए है जो उम्र दराज हो गए हैं या पहली बार इस यात्रा को करने जा रहे हैं इस यात्रा के दौरान भक्तों किसी पांडाल में रुक कर विश्राम करते हुए यात्रा को रुक-रुककर पूरा कर सकते हैं।

खड़ी कांवड़ यात्रा : खड़ी कांवड़ यात्रा बेहद कठिन होती है इस यात्रा के दौरान शिव के भक्तों को लगातार चलना रहता है हालांकि यदि किसी कारणवश भक्तों को रुकना पड़े तो इस दौरान उसका सहयोगी साथी अपने कंधे पर कांवड़ को रखकर हिलाता रहता है जिससे यह प्रतीत होता रहे थे कांवड़ यात्रा जारी है।

दांडी कांवड़ यात्रा : डांडी यात्रा कांवड़ यात्रा के कुछ सबसे कठिन प्रकारों में से एक है। इस यात्रा को करने के लिए भक्त शिव धाम तक दंड देते हुए अपनी यात्रा को पूरी करते हैं कई बार इस यात्रा को पूरा करने में 30 दिनों तक का वक्त लग जाता है।

डाक कांवड़ यात्रा : यात्रा के इस प्रकार में एक ऐसा इंतजाम किया जाता है जिससे शिव के जलाभिषेक की प्रक्रिया निरंतर जारी रहती है।

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