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दीवानी मामलों में लागू नहीं हो सकता एससी-एसटी एक्ट: सुप्रीम कोर्ट

  • एक दीवानी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सिखाया फैसला 

  • दीवानी विवाद के मामले में ‘SC/ST एक्ट’ नहीं हो सकता हथियार

  • सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया मद्रास हाईकोर्ट का समन

National Desk: एक दीवानी मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमीन और संपत्ति से जुड़े मामले में एससी-एसटी एक्ट लागू नहीं हो सकता. अनुसूचित जाति समुदाय का कोई व्यक्ति अपने और उच्च जाति समुदाय के किसी सदस्य के बीच विशुद्ध रूप से दीवानी विवाद को एससी-एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के दायरे में लाकर, इस कड़े दंड कानून को हथियार नहीं बना सकता. बता दें कि कई मामलों में SC/ST Act का सहारा लेकर झूठा मुकदमा लगाने या परेशान करने को लेकर खबरें भी आती रही हैं। ऐसे में अब उन लोगों को राहत मिलेगी, जिन के खिलाफ इस एक्ट का सहारा लेकर जबरन फंसाने की कोशिश की जाती रही है।

SC ने रद्द किया मद्रास हाईकोर्ट का समन

दरअसल, यह फैसला एक प्रकरण के संदर्भ में आया है। पी. भक्तवतचलम, जो अनुसूचित जाति समुदाय से संबंधित हैं, ने एक खाली भूखंड पर एक घर का निर्माण किया था। इसके बाद, उच्च जाति समुदाय के सदस्यों द्वारा उनके भूखंड के बगल में एक मंदिर का निर्माण किया जाने लगा। इसके बाद मंदिर के संरक्षकों ने शिकायत दर्ज कराई थी कि भक्तवतचलम ने भवन निर्माण नियमों का उल्लंघन करते हुए, अपने घर के भूतल और पहली मंजिलों में अनधिकृत निर्माण कराया है।

इसके जवाब में, पी. भक्तवतचलम ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत एक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि मंदिर का निर्माण आम रास्ते, सीवेज और पानी की पाइप लाइनों पर अतिक्रमण करके हो रहा. उन्होंने अपनी शिकायत में कहा कि उच्च जाति समुदाय के लोग सिर्फ उन्हें परेशान करने के लिए उनके घर के बगल में मंदिर का निर्माण करवा रहे हैं. पी. भक्तवतचलम ने अपनी शिकायत में यह भी कहा कि उन्हें अपनी संपत्ति के शांतिपूर्ण आनंद से केवल इसलिए वंचित किया जा रहा है, क्योंकि वह एससी समुदाय से आते हैं.

SC-ST एक्ट के अंतर्गत हुए अपराध में ‘जाति’ का एंगल होना जरूरी

जस्टिस एमआर शाह ने फैसले में आगे लिखा, ‘इसलिए, हमारा दृढ़ विचार है कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, उच्च न्यायालय को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर देना चाहिए था. उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया आदेश टिकने योग्य नहीं है और इसे रद्द किया जाना चाहिए. अपीलकर्ताओं के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही भी रद्द की जानी चाहिए.’ इससे पहले भी 25 अक्टूबर, 2021 को अपने एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘अगर किसी अदालत को ऐसा महसूस होता है कि SC/ST अधिनियम के तहत दर्ज कोई अपराध पूरी तरह से निजी या दीवानी से जुड़ा हुआ है या पीड़ित की जाति देखकर नहीं करा गया है, तो अदालतें मामले की सुनवाई निरस्त करने की अपनी ताकत का उपयोग कर सकती हैं.’

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