सनातन धर्म में भाद्रपद पूर्णिम का है अधिक महत्व
इस दिन होगी भगवान सत्यनारायण की विधि वत पूजा
व्रत आदि करने से मिलती है पुण्य प्राप्ति
धर्म डेस्क: सनातन धर्म की बात करें तो इसमें वर्ष के प्रत्येक मास में आने वाली न केवल पूर्णिमा तिथि का बल्कि अमावस्या तक का अधिक महत्व है। मगर बात यदि भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में आनी वाली पूर्णिमा और अमावस्या की हो तो इसका महत्व बाकी की पूर्णिमा तथा अमावस्या तिथि से कई गुना अधिक है। क्योंकि भाद्रपद माह में पितृपक्ष पड़ता है। इस पक्ष का हिंदू धर्म में खासा महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दौरान लोग अपने पितरों का तर्पण करते हैं व उनकी सेवा करते हैं। पिंडदान जैसे कर्म कार्ड भी इसी पक्ष में संपन्न किए जाते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें प्रत्येक माह में पढ़ने वाली पूर्णिमा को उस महीने के नाम से जाना जाता है। यही कारण है इस पूर्णिमा को भाद्रपद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, जिस दौरान चंद्रमा पूर्व भाद्रपद नक्षत्र में विराजमान रहते हैं।
लेकिन इसके महत्व से हर कोई रूबरू नहीं है तो चलिए आपको बताते हैं इस पूर्णिमा का महत्व, साथ ही जानेंगे कि इस भाद्रपद की पूर्णिमा का व्रत किस तरह से करना चाहिए।
भादप्रद पूर्णिमा तिथि-
1 सितंबर 2020 को सुबह 09:38 मिनट से पूर्णिमा तिथि आरंभ होगी।
2 सितंबर 2020 को सुबह 10:53 मिनट पर पूर्णिमा तिथि समाप्त।
महत्व-
कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा विशेष रहती है। कहा जाता है कि इस दिन सत्यनारायण भगवान का व्रत करने से तथा उनकी पूजा करने से व्यक्ति को अपने जीवन में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती। साथी जो लोग पूरी श्रद्धा भावना से इस दिन व्रत करते हैं उनके घर में हर प्रकार से सुख समृद्धि का वास होता है तथा कष्ट क्लेश दूर होते हैं। अन्य मान्यताओं की मानें तो इस दिन उमा महेश्वर व्रत भी रखा जाता है। तुम ही इस दिन दान स्नान का भी व्यक्ति को बहुत पुण्य प्राप्त होता है। क्योंकि भाद्रपद की पूर्णिमा से श्राद्ध पक्ष का आरंभ होता है इसलिए इसके बाद से पूरे 16 दिन अपने पितरों से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए खास होते हैं।
ऐसे करें भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत-
इस दिन जल्दी यानी सूर्य उदय से पहले उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद सबसे पहले पूजा घर की साफ सफाई करें।
इसके बाद जिस किसी पटरी पर भगवान सत्यनारायण की मूर्ति की स्थापना करनी हो उस पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर प्रतिमा स्थापित करें।
इनका विधिवत पूजन करने के बाद इनके व्रत की कथा खुद भी सुनें और दूसरों को भी सुनाएं।
ध्यान रहें उनकी पूजा में पंचामृत व चूरमे का प्रसाद अवश्य हो। और पूजन समाप्त तथा आरती करने के बाद सबसे पहले प्रसाद दूसरे लोगों में बांट दें उसके बाद कि खुद प्रसाद ग्रहण करें।
जो लोग इस दिन व्रत कर रहे हों वह सभी जनों में प्रसाद वितरित करने के बाद खुद पूरा दिन व्रत करने का संकल्प करें।
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