- महाभारत के दानवीर ने 15 दिन किया था पितर तर्पण
- स्वर्ग से पृथ्वी पर आकर की थी पितरों की पूजा
धर्म डेस्क: प्रत्येक वर्ष पड़ने वाले श्राद्ध पक्ष का सनातन धर्म में अधिक महत्व है। बताया जाता है कि श्राद्ध का मतलब होता है श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों को प्रसन्न करना। जिन लोगों के जो परिजन मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं, उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करना आवश्यक होता है। सनाातन धर्म से जुड़ी कुछ मान्यताओं के अनुसार इस पितृ पक्ष में मृत्यु के देवता यमराद श्राद्द पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं, ताकि वो परिवारजनों द्वारा किए गए तर्पण का हिस्सा बनकर उसे ग्रहण कर सकें तथा अपना आशीर्वाद उन पर बरसा सके। बता दें 2020 साल का पितृ पक्ष 01 सितंबर से आरंभ हो चुका है जिसका समापन 17 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के दिन होगा। जिसके बाद आज 03 सितंबर को श्राद्ध पक्ष का दूसरा श्राद्ध है। इसी अवसर पर हम आपको बताने वाले है पितृ पक्ष से जुड़ा एक ऐसा रहस्य जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे। दरअसल बहुत से लोग हैं जो इस बात से अंजान है कि असल में श्राद्ध पक्ष का रहस्य महाभारत से संबंधित है। चलिए आपको विस्तारपूर्वक बताते हैं इससे जुड़े जानकारी।
पौराणिक कथा-
कथा के अनुसार जब महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन द्वारा महादान वीर कहे जाने वाले कर्ण को मार दिया था, तो उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंची, जहां उन्हें खाने के लिए भोजन की बजाए सोने और गहने दिए गए। महादान वीर कर्ण की आत्मा को इस बात से बहुत निराश हुुई। उन्होंने इस निराशा को दूर करने के लिए इंद्र से इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि आपने अपनी पूरी उम्र केवल सोने का आभूषणों का ही दान किया हैै, कभी अपने पूर्वजों की शांति के लिए उन्हें भोजन अर्पित नहीं किया। जिसके बाद कर्ण काफी व्याकुल हो गए। मगर कर्ण ने इंद्रदेव को उत्तर देते हुए कहा कि वो अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानते।
ऐसा कथाएं प्रचलित हैं ये सुनने के बाद, स्वर्ग के राजा इंद्र ने कर्ण को 15 दिनों की अवधि देकर पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी थी ताकि वो अपने पूर्वजों को भोजन दान के रूप में समर्पित कर सके। शास्त्रों में इन्हीं 15 दिनों की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है।