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सुप्रीम कोर्ट ने हल्द्वानी में अतिक्रमण रोधी कार्य पर स्टे लगाया,रातों रात आप 50 हजार लोगों को नहीं हटा सकते

  • सुप्रीम कोर्ट ने हल्द्वानी में ध्वस्तीकरण के कार्य पर स्टे लगा दिया

  • सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार और भारतीय रेलवे को नोटिस भेजा

  • रातों रात आप 50 हजार लोगों को नहीं हटा सकते

  • अगली सुनवाई सात फरवरी को होगी

(नेशनल डेस्क) सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान उत्तराखंड के नैनीताल जिला स्थिति हल्द्वानी में ध्वस्तीकरण के कार्य पर स्टे लगा दिया. शीर्ष अदालत के इस आदेश के बाद 4000 परिवारों के आशियानों को फिलहाल नहीं उजाड़ा जाएगा।इसी के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार और भारतीय रेलवे को नोटिस भी भेजा है. कोर्ट ने कहा कि रातों रात आप 50 हजार लोगों को नहीं हटा सकते। यह एक मानवीय मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें कोई व्यावहारिक समाधान ढूंढना होगा। समाधान का यह सही तरीका नहीं है। जमीन की प्रकृति, अधिकारों की प्रकृति, मालिकाना हक की प्रकृति आदि से उत्पन्न होने वाले कई कोण हैं, जिनकी जांच होनी चाहिए। इन्हें हटाने के लिए केवल एक सप्ताह का समय काफी कम है। पहले उनके पुनर्वास पर विचार होना चाहिए। बता दें कि जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस. ओक की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। अब अगली सुनवाई सात फरवरी को होगी।

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याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने दलील देते हुए कहा कि प्रभावित होने वाले लोगों का पक्ष पहले भी नहीं सुना गया था और फिर से वही हुआ। हमने राज्य सरकार से हस्तक्षेप की मांग की थी। उन्होंने कहा कि ये भी साफ नहीं है कि ये जमीन रेलवे की है। हाईकोर्ट के आदेश में भी कहा गया है कि ये राज्य सरकार की जमीन है। इस फैसले से हजारों लोग प्रभावित होंगे।उत्तराखंड कांग्रेस के शीर्ष नेता सुप्रीम कोर्ट में मौजूद रहे। कांग्रेस ने इस मुद्दे को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया है। बुधवार को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा, कांग्रेस विधायक दल के उपनेता भुवन कापड़ी, हल्द्वानी के विधायक सुमित हृदयेश, उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप, विजय सारस्वत दिल्ली पहुंचे थे।

गौरतलब है कि उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 20 दिसंबर को हल्द्वानी में बनभूलपुरा में रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण करके बनाए गए ढांचों को गिराने के आदेश दिए थे. हाई कोर्ट ने निर्देश दिया था कि अतिक्रमण करने वाले लोगों को एक सप्ताह का नोटिस दिया जाए, जिसके बाद अतिक्रमण हटाया जाना चाहिए. हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि अर्धसैनिक बलों की तैनाती कर अतिक्रमण हटाया जाए, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गलत माना और कहा कि ऐसा कहना ठीक नहीं है.

बताया जाता है कि स्थानीय निवासियों के नाम नगर निगम के हाउस टैक्स रजिस्टर के रिकॉर्ड में दर्ज हैं और वे सालों से नियमित रूप से हाउस टैक्स का भुगतान करते आ रहे हैं. इनके अलावा, क्षेत्र में 5 सरकारी स्कूल, एक अस्पताल और दो ओवरहेड पानी के टैंक हैं.याचिका में आगे कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं और उनके पूर्वजों के लंबे समय से फिजिकल कब्जे, कुछ भारतीय स्वतंत्रता की तारीख से भी पहले, को राज्य और इसकी एजेंसियों द्वारा मान्यता दी गई है और उन्हें गैस और पानी के कनेक्शन और यहां तक कि आधार कार्ड नंबर भी दिए गए हैं. उनके आवासीय पते को अस्वीकार नहीं किया जा सकता.

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