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आशीष मिश्रा की जमानत याचिका पर आज भी नहीं हुआ फैसला,सुनवाई 20 जनवरी तक टली

  • आशीष मिश्रा की जमानत याचिका पर आज भी कोई फैसला नहीं

  • याचिका पर सुनवाई को 20 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दिया

  • आठ लोगों की हुई थी मौत 

(उत्तरप्रदेश डेस्क) उत्तरप्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों को गाड़ी से कुचल कर मारने के आरोपी केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ के बेटे आशीष मिश्रा की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज भी कोई फैसला नहीं हो पाया।

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई को 20 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दिया है। आशीष मिश्रा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जमानत देने से इनकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिका दायर की है।

बता दें कि आशीष मिश्रा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिका दायर की है, जिसमें कोर्ट ने मिश्रा को जमानत देने से इंकार कर दिया था. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश लखीमपुर खीरी की रिपोर्ट को भी पढ़ा, जो कहती है कि इस मुकदमे को पूरा होने में पांच साल का समय लगेगा, क्योंकि मामले में 208 गवाह हैं.दरअसल, शीर्ष अदालत ने पिछली सुनवाई में निचली अदालत से जानकारी मांगी थी कि बिना दूसरे मुकदमों पर असर डाले इस केस का निपटारा कितने समय में हो सकेगा. उधर, उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि हिंसा के सभी आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए हैं.

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश लखीमपुर खीरी की रिपोर्ट को भी पढ़ा, जो कहती है कि इस मुकदमे को पूरा होने में पांच साल का समय लगेगा, क्योंकि मामले में 208 गवाह हैं।दरअसल, शीर्ष अदालत ने पिछली सुनवाई में निचली अदालत से जानकारी मांगी थी कि बिना दूसरे मुकदमों पर असर डाले इस केस का निपटारा कितने समय में हो सकेगा। उधर, उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि हिंसा के सभी आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए गए हैं।

गौरतलब है कि 3 अक्टूबर 2021 को लखीमपुर खीरी में हिंसा के दौरान आठ लोगों की मौत हो गई थी, जब किसान उप्र के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इलाके के दौरे का विरोध कर रहे थे। उप्र पुलिस की प्राथमिकी के अनुसार चार किसानों को एक एसयूवी ने कुचल दिया था, जिसमें आशीष मिश्रा बैठे थे।

घटना के बाद गुस्साए किसानों ने ड्राइवर और दो भाजपा कार्यकर्ताओं की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। निरस्त किए गए कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे विपक्षी दलों और किसान समूहों में आक्रोश पैदा करने वाली इस हिंसा में एक पत्रकार की भी मौत हो गई थी।

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