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नासा को ‘न्यू मून रॉकेट’ में ईंधन डालते समय एक नए रिसाव का चला पता

  • नासा को एक नए रिसाव का चला पता
  • नासा को अपने ‘न्यू मून रॉकेट’ के प्रक्षेपण दौरान चला पता
  • इंजीनियरों ने कभी हाइड्रोजन ईंधन के रिसाव की वजह नहीं बताई

केप केनरवल/अमेरिका। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को अपने ‘न्यू मून रॉकेट’ के प्रक्षेपण से पहले उसमें ईंधन डालते समय मंगलवार को एक नए रिसाव का पता चला। चंद्रमा के चक्कर लगाने के लिए एक खाली ‘कैप्सूल’ भेजने का एजेंसी का यह तीसरा प्रयास था। इससे पहले, गर्मियों में दो बार रिसाव के कारण और बाद में फिर तूफान की वजह से प्रक्षेपण की योजना टालनी पड़ी थी। नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (नासा) के इंजीनियरों ने कभी हाइड्रोजन ईंधन के रिसाव की वजह नहीं बताई।

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हालांकि, उन्होंने रिसाव को कम करने के लिए ईंधन भरने की प्रक्रिया में बदलाव किए और भरोसा जताया कि 322 फीट (98 मीटर) लंबे रॉकेट की सभी प्रणालियां दुरुस्त रहेंगी। नासा ने ईंधन लाइनों पर दबाव कम करने और ‘सील’ को मजबूत बनाए रखने के लिए ईंधन भरने में लगने वाले समय को करीब एक घंटे बढ़ा दिया। इसके बाद ऐसा प्रतीत हुआ कि यह कदम कारगर साबित हो रहा है, लेकिन छह घंटे की प्रक्रिया के खत्म होते-होते, रुक-रुककर हाइड्रोजन का रिसाव शुरू हो गया। इसके मद्देनजर प्रक्षेपण दल ने कर्मियों को एक वाल्व को कसने के लिए ‘पैड’ पर भेजने का फैसला किया, क्योंकि रॉकेट के चंद्रमा की तरफ उड़ान भरने की उलटी गिनती शुरू हो चुकी थी।

अधिकारियों ने इस बात पर जोर दिया कि वाल्व ‘लॉन्च प्लेटफॉर्म’ का हिस्सा था, रॉकेट का नहीं। जब आखिरी रिसाव का पता चला, तब रॉकेट में लगभग 10 लाख गैलन (37 लाख लीटर) सुपर-कोल्ड हाइड्रोजन और ऑक्सीजन भरा जा चुका था। इसके बाद एजेंसी के पास रॉकेट को प्रक्षेपित करने के लिए दो घंटे का समय था। नासा ने प्रक्षेपण के लिए ‘केनेडी स्पेस सेंटर’ में बुधवार सुबह 15,000 लोगों के पहुचंने की उम्मीद जताई है। ‘स्पेस लॉन्च सिस्टम रॉकेट’ (एसएलएस) नासा द्वारा बनाया गया अब तक का सबसे शक्तिशाली रॉकेट है। अभियान के तहत अंतरिक्ष यात्री 2024 में अगले मिशन के लिए तैयारी करेंगे और 2025 में दो लोग चंद्रमा पर जाएंगे। नासा ने आखिरी बार दिसंबर 1972 में चंद्रमा पर अंतरिक्ष यात्री भेजे थे और फिर ‘अपोलो कार्यक्रम’ (चंद्र मिशन) को बंद कर दिया गया था।

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