भगवान गणेश को अति प्रिय है दूर्वा
श्री विष्णु के रोम से हुई थी उत्पन्न
पूजन मात्र से होती कुल वृद्धि
देवताओं के लिए भी हैं वंदनीय
धर्म डेस्क: हिंदू धर्म से संबंध रखने वाला लगभग प्रत्येक व्यक्ति जानता ही होगा कि भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए खासतौर पर दूर्वा भेंट की जाती है। जिस कारण दूर्वा को बहुत ही पावन व महत्वपूर्ण मानी जाती है। बता दें दूर्वा एक प्रकार की घास होती है। तमाम धार्मिक आयोजनो में इसका प्रयोग आचमन, संकल्प, और देवताओं के स्नान हेतु भी किया जाता है। इसके अलावा पूजन आदि में इसकी विभिन्न तारों को एक रक्षा सूत्र में बांधकर भी इसका इस्तेमाल होता है।
प्रचलित कथाओं की मानें तो प्राचीन समय में भगवान गणेश एक बार एक राक्षस को जिंदा निगल गए थे जिस कारण उनके पेट में अत्यंत दर्द हुआ था। इसी दर्द को खत्म करने के लिए उन्हें अन्य देवी-देवताओं द्वारा दूर्वा भेंट की गई, जिसके अमृत तुल्य गुण के प्रभाव ने गणपति की पीड़ा को शांत किया। था। ऐसी मान्यता है तब से ही भगवान गणेश की पूजा में दूर्वा का होना आवश्यक है, इसके बिना इनका पूजन-अर्चन अधूरा माना जाता है।
इसके अलावा इसकी उत्तपति को लेकर ये मान्यता प्रचलित है कि इसे भगवान विष्णु के द्वारा उत्पन्न किया गया था। भविष्य पुराण में इससे जुड़ा उल्लेख है कि समुद्र मंथन के दौरान क्षीर सागर में भगवान विष्णु ने मंदराचल पर्वत को अपने जांघ पर धारण किया था, जिस कारण मंथन के समय रगड़ लगने से विष्णु जी के रोम समुन्द्र में गिर गए। जिन्हें समुद्र की लहरों के द्वारा उछाला गया, जिससे ये धरती पर आ कर गिरे और दूर्वा घास का रूप ले लिया।
अन्य पौराणिक किंवदंतियों के मुताबिक जब धन्वन्तरि भगवान अमृत कलश के साथ समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुए तब देवताओं ने इस कलश को इस दूर्वा पर रखा था। जिसके बाद इसी अमृत को छूने मात्र से दूर्वा अमर हो गई। यही कारण है कि दूर्वा न केवल मनुष्य में बल्कि देवताओं के लिए वन्दनीय है।
दूर्वाष्टमी दूर्वा अष्टमी का व्रत और पूजा विधि
कहा जाता है देवताओं ने इस दिन दूर्वा का गंध, पुष्प, धुप दीप, मिठाई, फल, अक्षत, माला आदि से पूजन किया था। आज के समय में जो जातक दूर्वा का पूजन करता है तो उस वंश का कभी क्षय नहीं होता। दूर्वा के अंगों की तरह जातक के कुल की वृद्धि होती है। इतना ही नहीं इसके पूजन से दूर्वा की पूजन से सौभाग्य प्राप्त होता है तथा प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।
दूर्वा अष्टमी मुहूर्त-
पूर्वविद्धा समय – 12:21 पी एम से 06:59 पी एम
अवधि – 06 घण्टे 37 मिनट्स
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अगस्त 25, 2020 को 12:21 पी एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – अगस्त 26, 2020 को 10:39 ए एम बजे
इसके अलावा दूर्वा पूजन में निम्न मंत्र का जप करना चाहिए-
त्वं दूर्वे अमृतनजन्मासी वन्दिता च सुरासुरैः
सौभाग्यं संतति कृत्वा सर्वकार्य करी भव ।।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्विस्तृतासि महीतले ।
तथा ममापि संतानं देहि त्वमजरामरे ।।