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Bihar Political Crisis: नीतीश-भाजपा के रिश्तों में कई बार आई कड़वाहट, कई बार छूटा साथ, जानें

  • नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ा

  • राष्ट्रीय जनता दल के साथ किया गठबंधन  

  • नीतीश – बीजेपी के रिश्ते 

नेशनल डेस्क: बीते कई दिनों से बिहार की राजनीति में चल रही अंदरूनी उठापटक भविष्य में किसी बड़े सियासी तूफान की तस्दीक दे रही थी। इसी पर आज नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ दिया और लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन करने के संकेत दे दिए है। तो आइए एक नजर नीतीश – बीजेपी के रिश्ते पर डालते हैं –

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बीजेपी के सहयोग से पहली बार बने सीएम

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी के अकाली दल और शिवसेना की तरह सबसे पुराने सहयोगियों में से एक थे। ये अलग बात है कि मोदी – शाह की बीजेपी के साथ आज इनमें से कोई नहीं है। सीएम नीतीश को पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी का हमेशा से स्नेह प्राप्त रहा है। साल 2000 में अविभाजित बिहार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की सीटों की संख्या नीतीश की पार्टी से अधिक थी लेकिन फिर भी वाजपेयी के कहने के कारण उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया था।

हालांकि, बहुमत न होने के कारण उन्हें सात दिन में ही पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद साल 2005 के विधानसभा चुनाव में भी पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस और पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह जैसे सीनियर जेडीयू लीडर नहीं चाहते थे कि नीतीश कुमार को एनडीए का मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया जाए। लेकिन एक बार फिर यहां अटल बिहारी वाजपेयी ने वीटो करते हुए एक जनसभा में नीतीश कुमार का नाम बतौर सीएम कैंडिडेट ऐलान कर दिया।

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2010 में बीजेपी के साथ रिश्तों में आई पहली कड़वाहट

पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की मदद से बिहार की सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे नीतीश कुमार जैसे – जैसे मजबूत होते गए, उन्होंने पार्टी में अपने प्रतिद्वंदियों का सफाया करना शुरू कर दिया। केंद्र की सत्ता से बेदखल होने के बाद बीजेपी की भी हालत खराब हो गई थी।

ऐसे में बिहार भाजपा से जुड़े फैसलों में भी नीतीश कुमार की दखलअंदाजी काफी थी। कहा तो यहां तक जाता है बीजेपी कोटे से मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष तक की नियुक्ति में नीतीश कुमार की राय मायने रखती थी। बिहार में सुशील मोदी और केंद्र में अरूण जेटली से बेहतर संबंध के कारण उन्हें सरकार चलाने में पूरा फ्री हैंड मिला हुआ था। लेकिन बीजेपी में नरेंद्र मोदी के उभार के बाद से चीजें लड़खड़ाने लगी।

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साल 2010 में इसका पहला ट्रेलर भी दिखा, जब विधानसभा चुनाव से ऐन पहले बिहार के अखबारों में नीतीश – मोदी की साथ वाली तस्वीर छपी। ये तस्वीर 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान लुधियाना में एनडीए की एक रैली की थी। मोदी उस दौरान गुजरात के सीएम हुआ करते थे। उन्होंने बिहार में आई कोसी की प्रलयकारी बाढ़ के लिए 5 करोड़ की सहायता भी भेजी थी।

सीएम नीतीश इस तस्वीर से इतने नाराज हुए कि उन्होंने बीजेपी के केंद्रीय नेताओं के लिए आयोजित भोज को रद्द कर दिया। दरअसल उस दौरान पटना में बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक होने वाली थी। इतना ही नहीं गुजरात से बाढ़ पीड़ितों के लिए जो पैसा आया था, बिहार सीएम ने उसे भी लौटा दिया। उनके इन कदमों से बीजेपी के नेताओं को काफी अपमानित होना पड़ा। गठबंधन टूटने की भी खबरें चलने लगीं। लेकिन अरूण जेटली और सुशील मोदी की कोशिशों के बाद गठबंधन जारी रहा और एनडीए को साल 2010 में ऐतिहासिक जनादेश प्राप्त हुआ था।

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साल 2013 में बीजेपी से तोड़ा था नाता
इस घटना के तीन साल बाद एक बार फिर 2014 के लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मी बढ़ गई थी। ये सरगर्मी इसलिए भी बढ़ गई थी कि तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी दिल्ली पर अपनी दावेदारी ठोंक रहे थे। साल 2013 में जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनावों की जिम्मेदारी दी तब भी नीतीश कुमार खफा हो गए थे और 17 साल पुराने रिश्ते को तोड़कर आरजेडी से हाथ मिलाया था।
2015 में बनी महागठबंधन की सरकार
साल 2014 में अपने दम पर लोकसभा चुनाव लड़ने वाले सीएम नीतीश कुमार बुरी तरह हारे और उन्हें अंदाजा हो गया कि वह अकेले मोदी – शाह की बीजेपी से टक्कर नहीं ले पाएंगे। इसके बाद उन्होंने अपने दशकों पुराने गिले-शिकवे को दूर करते हुए लालू यादव के साथ मिल गए। साल 2015 के विधानसभा चुनाव में दोनों ने मिलकर साथ में कांग्रेस भी थी, बीजेपी को करारी शिकस्त दी। तकरीबन दो साल तक ये गठबंधन ठीक-ठाक चला। लेकिन गठबंधन में राजद की बढ़ती हैसियत को देखते हुए नीतीश खूद को काफी असुरक्षित महसूस कर रहे थे।
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साल 2017 में बनी जदयू-भाजपा की सरकार
साल 2017 में महागठबंधन में दरार पड़ी। फिर से एकबार उन्हें अपने पुराने मित्र बीजेपी की याद आई। साल 2017 में बिहार में एकबार फिर जदयू-भाजपा की सरकार बनी। साल 2019 में लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करने के बाद बीजेपी नेताओं का आत्मविश्वास सातवें आसमान पर पहुंच गया। इसी के बाद बीजेपी नीतीश को ठिकाना लगाने में जुट गई। अगले साल यानी 2020 के विधानसभा चुनाव के नतीजों से ये काफी हद तक स्पष्ट भी हो गया।
साल 2022 में फिर टूटा नीतीश और भाजपा का बंधन
वहीं, साल 2022 में फिर से नीतीश कुमार ने फिर से भाजपा के साथ चली लंबी सियासी खिंचतान के बाद आज दोनों का गठबंधन टूट गया और राष्ट्रीय जनता दल के साथ महागठबंधन कर लिया है।

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