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पितृ पक्ष में इन 5 जीवों को भोजन करवाने का है खासा महत्व, क्यों?

  • पितृ पक्ष में पूर्वजों के नाम पर  इन्हें किया जाता है भोजन
  • इन  5 जीवों को  भोजन अर्पित करने से मिलती है पितर कृपा
  • पाचों में से इसे प्रदान है खासा महत्व

धर्म डेस्क: सनातन धर्म से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष के 15 दिनों में तक लोग अपने पितरों की शांति के लिए उनका तर्पण, पिंडदान तथा श्राद्ध आदि जैसे कार्य करते हैं। इसके अलावा जो एक काम खास रूप से किया जाता है वो होता है इस दौरान पक्षियों को भोजन अर्पित करना। ऐसा कहा जाता है कि इस दौरान पितृ किसी न किसी पशु-पक्षी के रूप में अपने परिजनों द्वारा ग्रहण करने आते हैं। यही कारण है कि लोग इस दौरान पशु-पक्षियों को भोजन करवाते हैं। मगर क्या आप जानते हैं कि इस दौरान इस बात का ख्याल रखना बेहद ज़रूरी होता कि पितरों को समर्पित किया जाने वाला भोजन किसको अर्पित करना चाहिए यानि किस जानवर। जी हां, आपको बता दें आपको बता दें शास्त्रों में इस बारे में अच्छे से बताया गया है। तो चलिए जानते हैं पितृपक्ष में किन जीवों को करवाना चाहिए भोजन।

बताया जाता है जिन जीवों तथा पशु पक्षियों के माध्यम से पूर्वज आहार ग्रहण करते हैं वे हैं, गाय,कुत्ता,कौवा और चींटी। यही कारण है प्रत्येक व्यक्ति श्राद्ध के समय इनके लिए भी आहार का एक अंश निकालते हैं, अगर कोई श्राद्ध पक्ष में इनका अंश निकालना भूलता है तो श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता है।

कहा जाता है कि पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोजन के इन्हीं 5 अंशों को पंच बलि कहा जाता है। इस दौरान सबसे पहले भोजन की तीन आहुति कंडा जलाकर दी जाती है। इसके बाद श्राद्ध कर्म में भोजन के पूर्व 5 जगह पर अलग-अलग भोजन का थोड़ा-थोड़ा अंश निकाला जाता है। गाय,कुत्ता,चींटी और देवताओं के लिए पत्ते पर तथा कौवे के लिए भूमि पर अंश रखा जाता है।

पितृ पक्ष में इन 5 जीवों का ही चुनाव इसलिए किया गया क्योंकि कुत्ता जल तत्त्व का ,चींटी अग्नि तत्व का ,कौवा वायु तत्व का, गाय पृथ्वी तत्त्व का और देवता आकाश तत्व के प्रतीक हैं। इनको आहार समर्पित करने के बाद जातक पंच तत्वों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं।

इनमें से केवल 1 को लेकर ही कहा जाता है कि इसमें एक पांचों तत्व पाए जाते हैं। यही कारण है कि पितृपक्ष में गाय की सेवा विशेष फलदायी होती है। बल्कि कहा जाता गाय को मात्र चारा खिलाने और इनकी सेवा करने से पितरों की तृप्ति हो जाती है, इसे ब्राह्माण भोज के बरार माना जाता है।

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