प्रयागराज में ‘काली स्वांग’ की अनूठी परंपरा
मां काली का रूप धारण कर निकाली गई यात्रा
सड़कों पर उमड़ी भक्तों की भीड़
प्रयागराज: शक्ति के महापर्व नवरात्रि में देश में हर जगह मां के भक्त उनके दर्शन के लिए पूजा पंडालों में जाते हैं। वहीं संगम नगरी प्रयागराज में मां भगवती खुद पैदल चलकर भक्तों के पास पहुंचती हैं। इसमें रामायण के एक खास प्रसंग का स्वांग होता है। जिसे ‘काली स्वांग’ कहते है। इस स्वांग में मां सीता, काली के वेश में रामचंद्र के रथ के आगे भुजाली लेकर चलती है और खर दूषण वध का स्वांग होता है। इस मौके पर हजारों भक्त मां का आर्शीवाद लेने के लिए साथ चलते हैं। इन्हें इस बात की परवाह भी नहीं होती की काली पात्र के हाथ में लहराती भुजाली से वो घायल भी हो जाते है। ये स्वांग नवरात्री के दूसरे दिन से सप्तमी तक आयोजित होता है। जिसका हर साल श्रद्धालु बेसब्री से इंतजार करते हैं।
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प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में काली स्वांग का ये अनोखा और अदभुत आयोजन है। हाथ में भुजाली लेकर हजारों की भीड़ के बीच मां काली के वेश में काली पात्र मानो स्वयं में मां काली का ही रूप हो, हाथ में भुजाली लहराती है। इसके बाद भी लोग माँ का आशीर्वाद लेने को आतुर है। ये जानते हुए भी की भुजाली की चपेट में आकर वो घायल हो सकते हैं क्योंकि काली की भूमिका में काली पात्र खुद को काली मां का ही रूप मान कर व्यवहार करता है। दरअसल ये पूरा दृश्य रामायण के उस प्रसंग से जुड़ा है जिसमे सुपनखा के नाक-कान काटने के बाद खर-दूषण अपनी सेना लेकर राम से युद्ध के लिए आ पहुंचते है। तो सीता माता खुद काली का वेश धारण कर राम के रथ के आगे-आगे चलती है और खर-दूषण के वध में अपने पति की सहायता करती हैं।
यहां पर इस काली स्वांग की परंपरा 200 साल से ज्यादा पुरानी है और हर साल काली के पात्र के चयन के भी कड़े मापदंड होते है की इसमें काली पात्र बनने के लिए कुछ खास योग्यताएं होना जरुरी है। जिन लोगों की इस पात्र में रूचि होती है उनको कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। इसमें सबसे जरुरी होता है पात्र के लिए साल भर पहले से संयमित आचार और फिर कमेटी के लोग उसे चुनते है जो इन कसौटियों पर खरा होता है। शारदीय नवरात्र के द्वितीय से लेकर के सप्तमी तक इसी तरह हर रात मां काली अपने भक्तों की बीच में जाती है।
प्रयागराज से अखबारवाला.कॉम के लिए सैय्यद आकिब रजा की रिपोर्ट।
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