- पाकिस्तान ने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की दरकिनार
- अल्पसंख्यक पलायन करने को मजबूर
- मानवाधिकार आयोग ने भी माना
नेशनल डेस्क : संयुक्त राष्ट्र में बार-बार भारत के आंतरिक मामलों पर सवाल उठाने वाले पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी हैं। आतंक का गढ़ बने आतंकिस्तान में कानून और मानवाधिकार जैसी व्यवस्था से दूर-दूर का वास्ता भी नहीं रह गया है। सबसे ज्यादा दयनीय स्थिति वहाँ मौजूद अल्पसंख्यकों की है।
केवल अल्पसंख्यक हिंदू, सिख व ईसाई ही नहीं, बल्कि वहाँ के शिया मुसलमान भी हमेशा दहशत में रहते हैं। दहशतगर्दी पाकिस्तान में आंदोलन के लिए आवाज़ उठाने वालों की हत्या कर देते हैं।
पाकिस्तान में नौकरी से पहले धर्मांतरण की शर्त की खुली पोल
पाकिस्तान की व्यवस्था इतनी नीचे गिर गई हैं कि अंल्पसंख्यकों को नौकरी देने से पहले उनके सामने धर्मांतरण की शर्त रखी जाती है। जिसके बाद उस व्यक्ति को नौकरी मिलेगी या नहीं, ये तय किया जाता है। इसी साल जून में सिंध प्रांत के बादिन जिले में कई हिंदू परिवारों के जबरन धर्मांतरण का मामला सामने आया था। इसको लेकर अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने रिपोर्ट छापी।
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की महिलाओं की स्थिति दयनीय हैं। कट्टरपंथी संगठनों के इशारों पर अल्पसंख्यक हिंदू, सिख व ईसाई समाज की नाबालिग लड़कियों का अपहरण करके उनका जबरन धर्मांतरण व निकाह करा दिया जाता है। पुलिस भी कट्टरपंथियों की ही तरफदारी करती है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में हुई पुष्टि
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016-19 के बीच भारत में शरर्णािथयों की संख्या में 17 फीसद का इजाफा हुआ है। इनमें बड़ी संख्या पाकिस्तान से आने वाले वहां के धार्मिक अल्पसंख्यकों की है।
मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में भी हुआ खुलासा, आयोग ने जताई चिंता
पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (एचआरसीपी) का कहना है कि— “वर्ष 2019 में पाकिस्तान का मानवाधिकार के मामलों में रिकॉर्ड बेहद चिंताजनक रहा। इस दौरान राजनीतिक विरोधियों के दमन के साथ-साथ मीडिया पर भी प्रतिबंध लगाए गए।”
आयोग के अनुसार, बलूचिस्तान की खदानों में बाल श्रमिकों के यौन शोषण के समाचार सामने आए, जबकि हर पखवाड़े बच्चों से दुष्कर्म और उनकी हत्या की खबरें आम हैं। अल्पसंख्यक देश के संविधान के तहत प्रदत्त धार्मिक आजादी का लाभ उठा पाने में अक्षम हैं।